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अमेरिका H-1B वीजा के लिए ₹88 लाख वसूलेगा:6 साल का खर्च 50 गुना बढ़ा; भारत बोला- इससे कई परिवार प्रभावित होंगे

अमेरिका अब H-1B वीजा के लिए हर साल एक लाख डॉलर (करीब 88 लाख रुपए) एप्लिकेशन फीस वसूलेगा। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने शनिवार को व्हाइट हाउस में इस ऑर्डर पर साइन किए। नए चार्ज 21 सिंतबर से लागू होंगे।

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H-1B वीजा के लिए पहले औसतन 5 लाख रुपए लगते थे। यह 3 साल के लिए मान्य होता था। इसे 3 साल के लिए रिन्यू किया जा सकता था। अब अमेरिका में H-1B वीजा के लिए 6 साल में 5.28 करोड़ लगेंगे, यानी खर्च 50 गुना से ज्यादा बढ़ जाएगा।

अमेरिका के इस फैसले पर भारत ने भी प्रतिक्रिया दी है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने प्रेस रिलीज जारी कर कहा कि इस कदम का मानवीय असर भी पड़ेगा, क्योंकि कई परिवार प्रभावित होंगे। सरकार को उम्मीद है कि अमेरिकी अधिकारी इन समस्याओं का हल निकालेंगे।

विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत और अमेरिका दोनों की इंडस्ट्री, इनोवेशन और क्रिएटिविटी पर निर्भर है, ऐसे में दोनों देशों के बीच बातचीत से ही आगे का रास्ता निकलेगा।

गोल्ड कार्ड में हमेशा रहने का अधिकार मिलेगा

ट्रम्प ने H-1B में बदलाव के अलावा 3 नए तरह के वीजा कार्ड भी लॉन्च किए हैं। ‘ट्रम्प गोल्ड कार्ड’, ‘ट्रम्प प्लेटिनम कार्ड’ और ‘कॉर्पोरेट​​​​​ गोल्ड कार्ड’ जैसी सुविधाएं भी शुरू की गई हैं। ट्रम्प गोल्ड कार्ड (8.8 करोड़ कीमत) व्यक्ति को अमेरिका में अनलिमिटेड रेसीडेंसी (हमेशा रहने) का अधिकार देगा।

H-1B वीजा नियमों के बदलने से क्या होगा? 6 सवालों के जवाब में जानिए…

H-1B वीजा क्या है?

H-1B वीजा एक एक नॉन-इमिग्रेंट वीजा है। यह वीजा लॉटरी के जरिए दिए जाते रहे हैं क्योंकि हर साल कई सारे लोग इसके लिए आवेदन करते हैं।

यह वीजा स्पेशल टेक्निकल स्किल जैसे IT, आर्किटेक्चर और हेल्थ जैसे प्रोफेशन वाले लोगों के लिए जारी होता है।

हर साल कितने H-1B वीजा जारी होते हैं?

अमेरिकी सरकार हर साल 85,000 एच-1बी वीजा जारी करती है, जिनका इस्तेमाल ज्यादातर तकनीकी नौकरियों में होता है। इस साल के लिए आवेदन पहले ही पूरे हो चुके हैं।

आंकड़ों के अनुसार, केवल अमेजन को ही इस साल 10,000 से ज्यादा वीजा मिले हैं, जबकि माइक्रोसॉफ्ट और मेटा जैसी कंपनियों को 5,000 से अधिक वीजा स्वीकृत हुए हैं।

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल H-1B वीजा का सबसे ज्यादा फायदा भारत को मिला। हालांकि इस वीजा कार्यक्रम की आलोचना भी होती है।

कई अमेरिकी तकनीकी कर्मचारियों का कहना है कि कंपनियां H-1B वीजा का इस्तेमाल वेतन घटाने और अमेरिकी कर्मचारियों की नौकरियां छीनने के लिए करती हैं।

H-1B वीजा में बदलाव से भारतीयों पर क्या असर होगा?

H-1B वीजा के नियमों में बदलाव से 2,00,000 से ज्यादा भारतीय प्रभावित होंगे। साल 2023 में H-1B वीजा लेने वालों में 1,91,000 लोग भारतीय थे। ये आंकड़ा 2024 में बढ़कर 2,07,000 हो गई।

भारत की आईटी/टेक कंपनियां हर साल हजारों कर्मचारियों को H-1B पर अमेरिका भेजती हैं। हालांकि, अब इतनी ऊंची फीस पर लोगों को अमेरिका भेजना कंपनियों के लिए कम फायदेमंद होगा।

71% भारतीय H-1B वीजा धारक हैं और यह नई फीस उनके लिए बड़ा आर्थिक बोझ बन सकती है। खासकर मिड-लेवल और एंट्री-लेवल कर्मचारियों को वीजा मिलना मुश्किल होगा। कंपनियां नौकरियां आउटसोर्स कर सकती हैं, जिससे अमेरिका में भारतीय पेशेवरों के अवसर कम होंगे।

WASHINGTON, DC – JANUARY 30: U.S. President Donald Trump talks to reporters from the Resolute Desk after signing an executive order to appoint the deputy administrator of the Federal Aviation Administration in the Oval Office at the White House on January 30, 2025 in Washington, DC. Trump also signed a memorandum ordering an immediate assessment of aviation safety and ordering an elevation of what he called “competence” over “D.E.I.” (Photo by Chip Somodevilla/Getty Images)

88 लाख रुपए क्या हर साल लगेंगे?

नए नियम के अनुसार, H-1B वीजा के लिए $100,000 (लगभग ₹88 लाख रुपए) की फीस हर साल देनी होगी। यह फीस नए आवेदनों और मौजूदा वीजा धारकों के नवीनीकरण (renewals) दोनों पर लागू होगी।

यह फीस 21 सितंबर 2025 से लागू होगी और 12 महीनों के लिए प्रभावी रहेगी, जब तक कि इसे बढ़ाया न जाए। कंपनियों को इस भुगतान का प्रमाण रखना होगा। यदि भुगतान नहीं किया गया, तो याचिका को अमेरिकी राज्य विभाग या होमलैंड सुरक्षा विभाग (DHS) रद्द कर देगा।

अमेरिका से बाहर जाने पर क्या होगा?

अगर कोई H-1B कर्मचारी 21 सितंबर के बाद देश छोड़ता है, तो वापस अमेरिका आने के लिए उसकी कंपनी को 88 लाख का भुगतान करना होगा।

यही कारण है कि इस फैसले के बाद माइक्रोसॉफ्ट, जेपी मॉर्गन और अमेजन जैसी कंपनियों ने H-1B वीजा होल्डर कर्मचारियों को अमेरिका में ही रहने की सलाह दी है। रॉयटर्स के मुताबिक बाहर रहने वाले कर्मचारियों को सलाह दी कि वे शनिवार रात से पहले वापस आ जाएं।

कौन सी कंपनियां सबसे ज्यादा H-1B स्पॉन्सर करती हैं? भारत हर साल लाखों इंजीनियरिंग और कंप्यूटर साइंस के ग्रेजुएट तैयार करता है, जो अमेरिका की टेक इंडस्ट्री में बड़ी भूमिका निभाते हैं। इंफोसिस, TCS, विप्रो, कॉग्निजेंट और HCL जैसी कंपनियां सबसे ज्यादा अपने कर्मचारियों को H-1B वीजा स्पॉन्सर करती हैं।

कहा जाता है कि भारत अमेरिका को सामान से ज्यादा लोग यानी इंजीनियर, कोडर और छात्र एक्सपोर्ट करता है। अब फीस महंगी होने से भारतीय टैलेंट यूरोप, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, मिडिल ईस्ट के देशों की ओर रुख करेगा।

ट्रम्प प्रशासन बोला- H-1B का सबसे ज्यादा गलत इस्तेमाल हुआ

व्हाइट हाउस के स्टाफ सेक्रटरी विल शार्फ ने कहा कि H-1B वीजा प्रोग्राम उन वीजा सिस्टम में से एक है जिसका सबसे ज्यादा गलत इस्तेमाल हुआ। इसका मकसद उन सेक्टरों में काम करने वाले हाई स्किल्ड लेबरर्स को अमेरिका में आने की इजाजत देना है, जहां अमेरिकी काम नहीं करते।

विल शार्फ ने कहा- नए नियम के तहत, कंपनियां अपने लोगों को H-1B वीजा स्पॉन्सर करने के लिए एक लाख डॉलर फीस चुकाएंगी। इससे यह यह तय होगा कि विदेशों से जो लोग अमेरिका आ रहे हैं, वे सच में बहुत ज्यादा स्किल्ड हैं और उन्हें अमेरिकी कर्मचारी से रिप्लेस नहीं किया जा सकता।

सरकार 80 हजार गोल्ड कार्ड जारी करेगी

अमेरिकी वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने कहा कि अभी हर साल लगभग 2,81,000 लोगों को ग्रीन कार्ड दिया जाता है, लेकिन इनमें से ज्यादातर की औसत कमाई सिर्फ 66,000 डॉलर (करीब 58 लाख रुपए) होती है और कई बार वे सरकार की मदद पर भी निर्भर रहते हैं।

लुटनिक ने कहा,

सभी कंपनियां H-1B वीजा के लिए सालाना एक लाख डॉलर देने के लिए तैयार हैं। हमने उनसे बात की है। अगर आप किसी को ट्रेनिंग देने जा रहे हैं, तो किसी अमेरिकी यूनिवर्सिटी से निकले ग्रेजुएट को ट्रेनिंग दीजिए। अमेरिकियों को ट्रेनिंग दीजिए। हमारी नौकरियां छीनने के लिए लोगों को बाहर से लाना बंद करिए।

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लुटनिक के मुताबिक गोल्ड कार्ड की भारी फीस यह तय करेगी कि अमेरिका में सिर्फ सबसे योग्य और टॉप क्लास कर्मचारी ही लंबे समय तक टिक सकें। उन्होंने कहा कि ‘यह व्यवस्था पहले अनुचित थी, लेकिन अब हम सिर्फ उन्हीं को लेंगे जो वाकई बहुत काबिल हैं।’

लुटनिक ने कहा कि यह गोल्ड कार्ड अब तक चल रहे EB-1 और EB-2 वीजा की जगह लेगा। ये कार्ड केवल उन्हीं लोगों को मिलेगा, जो अमेरिका के लिए ‘फायदेमंद’ माने जाएंगे। शुरुआत में सरकार लगभग 80,000 गोल्ड कार्ड जारी करने की योजना बना रही है। लुटनिक ने कहा कि इस प्रोग्राम से अमेरिका को 100 अरब डॉलर की कमाई होगी।

ट्रम्प बोले- सिर्फ टैलेंटेड लोगों को वीजा देंगे

गोल्ड कार्ड की अनलिमिटेड रेसीडेंसी में नागरिकों को सिर्फ पासपोर्ट और वोट देने का अधिकार नहीं मिलता, बाकी सारी सुविधाएं एक अमेरिकी नागरिक के जैसी मिलती हैं। यह प्रक्रिया उसी तरह होगी, जैसे ग्रीन कार्ड के जरिए स्थायी निवास मिलता है।

राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहा कि यह वीजा प्रोग्राम खास तौर पर धनी विदेशियों के लिए है, ताकि वे 10 लाख डॉलर देकर अमेरिका में रहते हुए काम कर सकें। उन्होंने कहा कि अब अमेरिका सिर्फ टैलेंटेड लोगों को ही वीजा देगा, न कि ऐसे लोगों को जो अमेरिकियों की नौकरियां छीन सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इस रकम का इस्तेमाल टैक्स को घटाने और सरकारी कर्ज चुकाने में किया जाएगा।

RALEIGH, NORTH CAROLINA – NOVEMBER 04: Republican presidential nominee, former President Donald Trump dances off stage at the conclusion of a campaign rally at the J.S. Dorton Arena on November 04, 2024 in Raleigh, North Carolina. With one day left before the general election, Trump is campaigning for re-election in the battleground states of North Carolina, Pennsylvania and Michigan. (Photo by Chip Somodevilla/Getty Images)

EB-1 और EB-2 वीजा की जगह लेगा गोल्ड कार्ड

इसके लिए एक सरकारी वेबसाइट (https://trumpcard.gov/) बनाई गई है, जहां लोग अपना नाम, ईमेल और क्षेत्र की जानकारी देकर आवेदन शुरू कर सकते हैं। आवेदकों को 15,000 डॉलर की जांच फीस देनी होगी और सख्त सुरक्षा जांच से गुजरना होगा।

कॉमर्स सेक्रेटरी हॉवर्ड लुटनिक के मुताबिक, यह गोल्ड कार्ड मौजूदा EB-1 और EB-2 वीजा की जगह लेगा। एक महीने के भीतर अन्य ग्रीन कार्ड श्रेणियां बंद हो सकती हैं। EB-1 वीजा अमेरिका का एक स्थायी निवास (ग्रीन कार्ड) वीजा है।

EB-2 वीजा भी ग्रीन कार्ड के लिए है, लेकिन उन लोगों के लिए जो उच्च शिक्षा (मास्टर्स या उससे ऊपर) की योग्यता रखते हों।

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