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गिद्धों की घटती संख्या: एक गंभीर चिंता

गिद्धों की घटती संख्या: एक गंभीर चिंता

गिद्ध, पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने वाले प्रमुख पक्षी, आज विलुप्ति की कगार पर हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में गिद्धों की प्रजातियों में तेज़ी से गिरावट देखी जा रही है, जो न केवल जैव विविधता के लिए खतरा है, बल्कि मानव जीवन पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है। गिद्धों की संख्या में इस चिंताजनक कमी के कई कारण हैं, जिनमें प्रमुख रूप से प्रदूषण, भोजन की कमी, और दवाइयों का दुष्प्रभाव शामिल हैं।

गिद्धों का महत्व

गिद्ध पर्यावरणीय स्वच्छता के मुख्य आधार हैं। वे मृत पशुओं के शवों को खाकर बीमारियों के प्रसार को रोकते हैं। अगर मृत पशु लंबे समय तक खुले में पड़े रहें, तो उनमें से रोगाणु हवा और पानी को दूषित कर सकते हैं। गिद्ध इस प्रक्रिया को रोकने में सहायक होते हैं। उनके बिना, कई संक्रामक बीमारियां, जैसे एंथ्रेक्स और रेबीज़, तेजी से फैल सकती हैं।
https://youtu.be/7H5nE0nMIC0
गिरावट के प्रमुख कारण

डाइक्लोफेनेक का प्रभाव:
डाइक्लोफेनेक एक दर्द निवारक दवा है, जिसे पशुओं के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है। जब गिद्ध इन पशुओं के शवों को खाते हैं, तो यह दवा उनके लिए घातक साबित होती है। इससे उनके गुर्दे (किडनी) फेल हो जाते हैं और उनकी मृत्यु हो जाती है।

आवास का विनाश:
वनों की कटाई और शहरीकरण के कारण गिद्धों के घोंसले बनाने की जगहें खत्म हो रही हैं। पुराने पेड़, जो उनके घोंसले के लिए उपयुक्त होते हैं, बड़ी संख्या में काटे जा रहे हैं।

भोजन की कमी:
पशुपालन में कमी और मवेशियों की संख्या घटने के कारण गिद्धों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पा रहा है।

शिकार और ज़हर:
कई क्षेत्रों में गिद्धों को ज़हर देकर मारा जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि कुछ लोग उन्हें अशुभ मानते हैं, जबकि अन्य उनके अंगों का उपयोग पारंपरिक दवाओं में करते हैं।

जलवायु परिवर्तन:
पर्यावरण में हो रहे बदलाव गिद्धों के प्रजनन और जीवन चक्र पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं।

गिद्ध संरक्षण के प्रयास

हालांकि गिद्धों की संख्या में गिरावट को रोकने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन यह अभी भी पर्याप्त नहीं है।

डाइक्लोफेनेक पर प्रतिबंध:
भारत सरकार ने डाइक्लोफेनेक के पशु चिकित्सा उपयोग पर प्रतिबंध लगाया है। इसका उद्देश्य गिद्धों की मृत्यु दर को कम करना है।

संरक्षण क्षेत्र:
गिद्ध संरक्षण के लिए विशेष प्रजनन केंद्र और अभयारण्य बनाए गए हैं। जैसे हरियाणा में पिंजौर गिद्ध प्रजनन केंद्र।

जागरूकता अभियान:
गिद्धों के महत्व को समझाने और उनके प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए विभिन्न संगठनों द्वारा अभियान चलाए जा रहे हैं।

पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखना:
जैव विविधता की रक्षा के लिए गिद्धों की भूमिका को समझते हुए, उनके आवास क्षेत्रों को संरक्षित करने की आवश्यकता है।

आगे का रास्ता

गिद्धों की घटती संख्या केवल एक प्रजाति की समस्या नहीं है, बल्कि यह पूरे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरा है। इसके समाधान के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है।

स्थानीय समुदायों की भागीदारी:
स्थानीय लोगों को गिद्धों की उपयोगिता और उनके संरक्षण के महत्व के बारे में शिक्षित करना।

वैकल्पिक दवाओं का उपयोग:
डाइक्लोफेनेक के विकल्प के रूप में सुरक्षित दवाओं का विकास और उपयोग।

वैज्ञानिक अनुसंधान:
गिद्धों के प्रजनन और व्यवहार पर गहन अध्ययन और अनुसंधान के माध्यम से उनकी संख्या बढ़ाने के तरीके ढूंढे जा सकते हैं।

वैश्विक सहयोग:
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गिद्ध संरक्षण कार्यक्रमों में सहयोग और अनुभव साझा करना।

गिद्धों का संरक्षण केवल पर्यावरणविदों की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह हर नागरिक का कर्तव्य है। यदि हमने अब कदम नहीं उठाए, तो एक ऐसा दिन आएगा जब गिद्ध केवल इतिहास की किताबों में मिलेंगे। उनकी रक्षा के लिए अभी प्रयास करना नितांत आवश्यक है, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां भी इस अद्भुत पक्षी को देख सकें और एक संतुलित पर्यावरण में जीवन जी सकें

लेखक-आचार्य नवीन चन्द्र सुयाल (एमए,बीएड)

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