भारतीय अर्थव्यवस्था के ‘भीष्म पितामह प्रोफेसर से प्रधानमंत्री तक का ऐसा रहा सफर
डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर, 1932 को पंजाब में हुआ था. भारत के विभाजन के बाद, उनका परिवार हल्द्वानी, भारत में चला गया. एमबी इंटर कॉलेज से मिली जानकारी के अनुसार, यह हल्द्वानी शहर का सबसे पुराना इंंटर कॉलेज है. 13 अक्टूबर 1908 को इसकी स्थापना हुई थी. इस इंटर कॉलेज से पढ़ चुके कई छात्र आज बड़े-बड़े पदों पर हैं. इस स्कूल ने देश को एक से बढ़कर एक डॉक्टर, शिक्षक, जज और राजनेता दिए हैं. 1948 में वे अमृतसर चले गए, जहां उन्होंने हिंदू कॉलेज, अमृतसर में अध्ययन किया. उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, फिर होशियारपुर में अर्थशास्त्र का अध्ययन किया और 1952 और 1954 में क्रमशः स्नातक और मास्टर डिग्री प्राप्त की, अपने शैक्षणिक जीवन में प्रथम स्थान पर रहे. उन्होंने 1952 और 1954 में पंजाब विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री हासिल की. उन्होंने 1957 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से आर्थिक ट्रिपोस पूरा किया. इसके बाद 1962 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डी. फिल. की उपाधि प्राप्त की. उन्होंने 1957 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अपना अर्थशास्त्र ट्रिपोस पूरा किया. वे सेंट जॉन्स कॉलेज के सदस्य थे.डी फिल. पूरा करने के बाद सिंह भारत लौट आए. वे 1957 से 1959 तक पंजाब विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के वरिष्ठ व्याख्याता रहे. साल 1959 और 1963 के दौरान, उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र में रीडर के रूप में काम किया और 1963 से 1965 तक वे वहाँ अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे.डॉ. सिंह ने पंजाब विश्वविद्यालय और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में शिक्षण कार्य किया.
वह 1971 में वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के रूप में भारत सरकार में शामिल हुए. उन्हें जल्द ही 1972 में वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में पदोन्नत किया गया. यूएनसीटीएडी (व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन) सचिवालय में एक छोटे कार्यकाल के बाद, उन्हें 1987-1990 तक जिनेवा में दक्षिण आयोग का महासचिव नियुक्त किया गया.मनमोहन सिंह एकअर्थशास्त्री हैं, जिन्होंने भारत के प्रधान मंत्री के रूप में दो कार्यकालों तक अपनी सेवाएं दीं। उनसे पहले केवल जवाहर लाल नेहरू ही थे, जो दो बार लगातार पीएम रहे। उनके बाद नरेंद्र मोदी। डॉ. सिंह ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट के साथ अपनी युवावस्था में संयुक्त राष्ट्र के लिए काम किया और बाद में हमारे देश के आर्थिक शासन में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। उन्हें 1991 में देश की अर्थव्यवस्था को फिर से विकसित करने के लिए संरचनात्मक सुधारों की रूपरेखा तैयार करके देश को पूर्ण आर्थिक संकट के कगार से बचाने का श्रेय दिया जाता है।
वित्त मंत्री के रूप में उनके नेतृत्व में, संकट सफलतापूर्वक टल गया और भारत विश्व बाजार में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनने की राह पर लौट आया। 1991 में उन्हें राज्य सभा के सदस्य के रूप में चुना गया था और उन्होंने अपनी पहली जीत के बाद से चार कार्यकालों के लिए सेवा की।साल 1991 में, वित्त मंत्री के रूप में डॉ. मनमोहन सिंह ने लाइसेंस राज को समाप्त कर दिया, जो दशकों से भारतीय अर्थव्यवस्था में धीमी आर्थिक वृद्धि और भ्रष्टाचार का सोर्स था। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को उदार बनाया, जिससे भारत के विकास में नाटकीय रूप से उछाल देखा गया।पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) अधिनियम 2005 को 23 जून 2005 को भारत के राष्ट्रपति की मंजूरी मिली। यह अधिनियम 10 फरवरी 2006 को विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) नियम 2006 के साथ लागू हुआ।राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) अधिनियम 2005पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में भारत सरकार ने 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) की शुरुआत की, जो एक सामाजिक सुरक्षा योजना है जिसका उद्देश्य भारत में ग्रामीण समुदायों और मजदूरों को आजीविका, भरण-पोषण और रोजगार प्रदान करना है। नरेगा एक वर्ष में कम से कम 100 दिनों का निश्चित वेतन वाला रोजगार प्रदान करके ग्रामीण परिवारों को आय सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
जीडीपी 10.08% पर पहुंच गईराष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग द्वारा गठित रियल सेक्टर सांख्यिकी समिति द्वारा तैयार जीडीपी पर आंकड़ों के अनुसार, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार के तहत 2006-2007 में भारत ने 10.08% की वृद्धि दर दर्ज की थी। सरकारी योजना का लाभ लेने के लिए आज जिस दस्तावेज की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, उसका नाम है ‘आधार’. इस आधार की शुरुआत डॉ मनमोहन सिंह की सरकार ने की थी. इसकी शुरुआत देश के हर नागरिक को विशिष्ट पहचान देने के लिए और विभिन्न सेवाओं तक पहुंच को सुविधाजनक बनाने के लिए की गई थी. सरकारी योजना का लाभ लेने के लिए आज जिस दस्तावेज की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, उसका नाम है – ‘आधार’. इस आधार की शुरुआत डॉ मनमोहन सिंह की सरकार ने की थी. इसकी शुरुआत देश के हर नागरिक को विशिष्ट पहचान देने के लिए और विभिन्न सेवाओं तक पहुंच को सुविधाजनक बनाने के लिए की गई थी. vयह 1991 में अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के बाद से भारत में दर्ज की गई सबसे अधिक जीडीपी थी। उच्चतम जीडीपी वृद्धि दर 2006-2007 में 10.08% थी।पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार के तहत भारत की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक भारत-अमेरिका परमाणु समझौता या भारत नागरिक परमाणु समझौता पर हस्ताक्षर करना था। भारत और अमेरिका के बीच इस समझौते की रूपरेखा मनमोहन सिंह और संयुक्त राज्य अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश द्वारा एक संयुक्त बयान में बनाई गई थी। समझौते के तहत, भारत अपनी नागरिक और सैन्य परमाणु सुविधाओं को अलग करने के लिए सहमत हुआ और सभी नागरिक परमाणु सुविधाओं को अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के अधीन रखा जाएगा। इस समझौते पर 18 जुलाई 2005 को हस्ताक्षर किए गए थे।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ऐसे दौर की अध्यक्षता की, जब भारतीय अर्थव्यवस्था 8-9% की आर्थिक वृद्धि दर के साथ बढ़ी। 2007 में, भारत ने 9% की अपनी उच्चतम जीडीपी वृद्धि दर हासिल की और दुनिया की दूसरी सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बन गई। साल 2005 में, सिंह की सरकार ने वैट कर पेश किया जिसने जटिल बिक्री कर की जगह ले ली।पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में पारित सूचना का अधिकार अधिनियम एक महत्वपूर्ण कानून है जो भारतीय नागरिकों को सरकारी अधिकारियों और संस्थानों से सूचना मांगने का अधिकार देता है। यह अधिनियम लोक प्रशासन में पारदर्शिता, जवाबदेही को बढ़ावा देने और भ्रष्टाचार को कम करने में सहायक रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को भारत के आर्थिक सुधारों के वास्तुकार के रूप में भी जाना जाता है। मनमोहन सिंह के लिए महत्वपूर्ण क्षण साल 1991 में आया, जब उन्होंने प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव के अधीन वित्त मंत्री के रूप में अर्थव्यवस्था को नियंत्रण मुक्त कर दिया।
इसके बाद भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश तथा व्यापार में क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिले। वित्त मंत्री के रूप में, मनमोहन सिंह ने कई मोर्चों से दबाव के बीच अर्थव्यवस्था को उदार बनाने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया। आइए, जान लेते हैं पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के कुछ बड़े फैसले जिसने भारत को प्रगति के पथ लेकर गए। मनमोहन सिंह को शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार, खाद्य सुरक्षा कानून, भूमि अधिग्रहण कानून, वन अधिकार कानून और मनरेगा जैसे ऐतिहासिक सुधारों के लिए याद किया जाएगा. मनमोहन सिंह कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पासआउट थे। उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की थी। इसके बाद में पंजाब यूनिवर्सिटी, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के तौर पर काम किया। मनमोहन सिंह को भारत का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान पद्म विभूषण 1987 में मिला था।
इसके अलावा उनको कई पुरस्कार और मानद उपाधियां मिली थीं। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के निधन से बहुत दुख हुआ. राष्ट्र के प्रति उनके योगदान और सार्वजनिक सेवा के प्रति उनके समर्पण को हमेशा याद रखा जाएगा उनके नाम पर कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार दर्ज हैं. डॉ. मनमोहन सिंह अपने सादगीपूर्ण जीवन और ईमानदार छवि के लिए हमेशा जाने जाते रहेंगे. उन्होंने हमेशा देश की प्रगति और आम जनता के हित को प्राथमिकता दी. उनका निधन भारत के लिए एक बड़ी क्षति है. वे एक ऐसे नेता थे, जिन्होंने न केवल भारत को आर्थिक संकट से उबारा बल्कि एक समृद्ध और स्थिर देश की नींव भी रखी. उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगा.लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला (लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)