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Air Pollution in Uttarakhand: A Critical Environmental Crisis in 2024

Air Pollution in Uttarakhand: A Critical Environmental Crisis

उत्तराखंड में वायु प्रदूषण एक गंभीर मुद्दा बन गया है, जिसका समाधान केवल सरकार के प्रयासों से संभव नहीं है।
इसमें हर व्यक्ति को अपनी भूमिका निभानी होगी। प्रदूषण नियंत्रण के लिए सामूहिक प्रयास, नवीनतम तकनीक का
उपयोग और जागरूकता अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। उत्तराखंड के प्राकृतिक सौंदर्य और स्वास्थ्य की रक्षा के लिए यह अनिवार्य
है कि वायु प्रदूषण को रोकने के लिए हम सभी मिलकर प्रयास करें।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड राज्य में पहाड़ से लेकर मैदान तक ध्वनि और वायु प्रदूषण की गुणवत्ता की जांच करेगा। इसके
लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सभी क्षेत्रीय कार्यालयों को पत्र भेजा है।दिवाली में हवा की गुणवत्ता प्रभावित
होती है पर कुछ सालों में कई शहरों में सुधार होने का संकेत मिल रहा है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड दिवाली के सात दिन
पहले और सात दिन बाद हवा की गुणवत्ता की जांच करता है। वर्ष-2021 से ऋषिकेश, काशीपुर और हल्द्वानी में
तीन साल लगातार एक्यूआई में सुधार हुआ है। इसका एक कारण आतिशबाजी कम होना भी हो सकता है। दिवाली
के दिन लोग जमकर आतिशबाजी करते है। इससे हवा की गुणवत्ता प्रभावित होती है। हवा प्रदूषित होने और शोर से
कई लोगों को असहजता भी महसूस होती है।

ऐसे में लोग आतिशबाजी कम करें इसके लिए जागरूकता के प्रयास किए जाते हैं। इसके अलावा पीसीबी ने पहाड़ों में
भी हवा की गुणवत्ता जांचने का काम शुरू किया है। बहरहाल, पीसीबी के आंकड़ों के अनुसार दिवाली में लगातार तीन
सालों में ऋषिकेश, काशीपुर और हल्द्वानी में हवा कीगुणवत्ता की जांच की गई, उसमें हर वर्ष लगातार एक्यूआई में सुधार
दिखाई दिया है। जबकि देहरादून में 2021 कीतुलना में वर्ष-2022 में 80 एक्यूआई का सुधार आया था। वर्ष-2023 में वह
फिर 2021 की स्थिति में पहुंच गया। कमोबेश यही हाल रुद्रपुर का है। वहीं, हरिद्वार में वर्ष-2022 की तुलना में हवा की
गुणवत्ता कुछ प्रभावित हुई है।प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सार्वजनिक सूचना देने के मामले में पीछे चल रहा है।

हालत यह है कि पीसीबी हवा की गुणवत्ता की जांच करता है, उसका डेटा रियल टाइम तो दूर की बात है, उस माह
तक जारी नहीं हो पाता है। पीसीबी की वेबसाइट पर देहरादून, ऋषिकेश, काशीपुर, हरिद्वार, रुद्रपुर, हल्द्वानी, उत्तरकाशी, टिहरी, पौड़ी,
गोपेश्वर, अल्मोड़ा, बागेश्वर और नैनीताल निगरानी के साथ यहां के प्रदूषण की जानकारी देने के लिए पीएम-10,
एसओ टू समेत अन्य की जानकारी दी गई है, पर यह जानकारी अगस्त माह की है। पीसीबी के सदस्य सचिव कहते हैं
कि व्यवस्था में सुधार का प्रयास किया जा रहा है, वेबसाइट में सुधार किया जाएगा। इसके अलावा प्रयास है कि जल्द
यह जानकारी साझा की सके। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने ध्वनि और वायु प्रदूषण की गुणवत्ता की जांच के लिए तैयारियाँ
तेज कर दी हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने सभी क्षेत्रीय कार्यालयों को इस संबंध में निर्देश दिए हैं।

यह विशेष जांच दिवाली के त्योहार के दौरान, 24 अक्टूबर से 7 नवंबर तक, 15 दिनों के लिए की जाएगी। राज्य
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव ने बताया कि यह जांच दिवाली के समय में प्रदूषण स्तर की वृद्धि का आकलन
करने के लिए आवश्यक है। हर वर्ष इस दौरान वायु और ध्वनि प्रदूषण में बढ़ोतरी देखी जाती है, और इस बार भी
सभी आवश्यक कदम उठाए जाएंगे। जांच नैनीताल जिले के हल्द्वानी और नैनीताल, साथ ही देहरादून, ऋषिकेश,
रुड़की, हरिद्वार, काशीपुर, रुद्रपुर और टिहरी जैसे प्रमुख स्थानों पर की जाएगी। जांच के परिणाम केंद्रीय प्रदूषण
नियंत्रण बोर्ड को भेजे जाएंगे, ताकि उचित कार्रवाई की जा सके। राज्य में प्रदूषण की निगरानी और संबंधित कार्यों के
लिए पीसीबी के राज्य मुख्यालय के अलावा चार क्षेत्रीय कार्यालय हैं, जो देहरादून, रुड़की, हल्द्वानी और काशीपुर में
स्थित हैं। इन कार्यालयों के माध्यम से राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में प्रदूषण स्तर की नियमित निगरानी की जाएगी। इस
पहल से न केवल स्थानीय प्रशासन को मदद मिलेगी, बल्कि नागरिकों को सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण उपलब्ध

कराने में भी सहायता मिलेगी। उत्तराखंड में बारिश के बाद जंगलों की आग भले ही शांत हो गई हो, लेकिन उसका
असर अभी तक दिखाई दे रहा है. हालात ये है कि पहाड़ की आबोहवा भी पूरी तरह से दूषित हो चुकी है. जानकार
इसके पीछे पिछले महीने से जंगलों में लगी आग और पहाड़ में पर्यटकों के वाहनों का बढ़ता दबाव मान रहे है.दिल्ली,
हरियाणा, यूपी, पंजाब और राजस्थान के अलावा देश भर से बड़ी संख्या में पर्यटक शुद्ध आबोहवा और प्राकृतिक
सौंदर्य के लिए उत्तराखंड आते है, लेकिन इस साल जंगलों में लगी आग और वाहनों की बढ़ती भीड़ ने पहाड़ की हवा
को भी खराब कर दिया है. झील और खूबसूरत वादियों के साथ-साथ ठंडी हवाओं के लिए जाना-जाने वाले नैनीताल
भी वायु प्रदूषण की चपेट में आ गया है.

कारखानों से निकलता धुआं, लगातार कटते जंगल, वाहनों से निकलने वाला प्रदूषण और वनाग्नि ये सब उत्तराखंड के
लिए घातक साबित हो रहे है. जिसका असर सीधे तौर पर हिमायल पर पड़ रहा है. जंगलों की आग से वायुमंडल में
कार्बन पार्टिकल्स भी नई समस्या को जन्म दिया है. दरअसल, ब्लैक कार्बन वायुमंडल में फैलने के बाद हिमालयी ग्लेशियर
को भी नुकसान पहुंचा रहे है.क्या हैं पर्यावरणविद का कहना है कि हम जल-जंगल और जमीन को बचाने के लिए बाते तो
बड़ी-बड़ी करते है, लेकिन धरातल पर इसके लिए काम होता दिखाई नहीं दे रहा है. हर काम सरकार करें ये जरूरी नहीं,
बल्कि हम सबकों को मिलकर इस दिशा में काम करना होगा.जबकि हम वास्तविक स्थिति को देखकर मुंह मोड़ लेते हैं, जो
सही नहीं है. जिस रफ्तार के साथ आज वाहन पहाड़ों पर पहुंच रहे है, वो भी वायु प्रदूषण का बड़ा कारण बना रहा है.
सीएनजी गाड़ियों की बात तो की जाती है,लेकिन वो एक दो ही दिखाई देती है. डीजल और पेट्रोल की गाड़ियां लगातार वायु
प्रदूषण फैल रही हैं. इतना ही नहीं सरकार को भी इस दिशा में जरूर सोचना चाहिए कि उत्तराखंड के जंगलों में हर साल
आग की इतनी अधिक घटना क्यों हो रही है? बात सिर्फ पर्यावरण प्रदूषण की नहीं है, बात हमारे जल जंगल की भी है
आज प्रदेश में जल स्रोतों केक्या हालात हैं यह किसी से छुपे नहीं है.लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं

उत्तराखंड में वायु प्रदूषण: स्थिति, कारण, और समाधान

उत्तराखंड, अपनी प्राकृतिक सुंदरता, हरियाली और पहाड़ों के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यहां वायु प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ा है, जो कि न केवल पर्यावरण बल्कि स्थानीय निवासियों के स्वास्थ्य के लिए भी चिंता का विषय बन गया है। आइए उत्तराखंड में वायु प्रदूषण की स्थिति, इसके कारण और संभावित समाधान पर चर्चा करते हैं।

वायु प्रदूषण की स्थिति
उत्तराखंड के प्रमुख शहर जैसे देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश और हल्द्वानी में वायु गुणवत्ता स्तर में गिरावट देखी जा रही है। सर्दियों के मौसम में खासकर, प्रदूषण का स्तर इतना बढ़ जाता है कि यह स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक होता है। देहरादून और हरिद्वार जैसे स्थानों पर PM2.5 और PM10 कणों की मात्रा बढ़ रही है, जो कि श्वसन और हृदय रोगों का मुख्य कारण बनती है।

वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण
1. वाहनों का धुआं
देहरादून, हरिद्वार और हल्द्वानी जैसे बड़े शहरों में वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। पुराने और डीजल से चलने वाले वाहनों से निकलने वाला धुआं प्रदूषण का मुख्य स्रोत है। इससे उत्सर्जित कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, और पार्टिकुलेट मैटर वायुमंडल को प्रदूषित कर रहे हैं।

2. निर्माण गतिविधियाँ
उत्तराखंड में शहरीकरण के चलते निर्माण कार्यों में भारी वृद्धि हुई है। निर्माण कार्यों के दौरान धूल और रेत हवा में मिल जाते हैं, जिससे वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी होती है। विशेषकर देहरादून जैसे तेजी से विकसित हो रहे क्षेत्रों में यह समस्या गंभीर है।

3. औद्योगिक गतिविधियाँ
हरिद्वार और अन्य औद्योगिक क्षेत्रों में फैक्ट्रियों का बढ़ता विस्तार वायु प्रदूषण का एक अन्य प्रमुख कारण है। कारखानों से निकलने वाला धुआं और हानिकारक गैसें वायुमंडल में घुलकर हवा को जहरीला बना रही हैं।

4. जंगलों की आग
उत्तराखंड में हर साल गर्मियों के दौरान जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ जाती हैं। इन आगजनों से वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और अन्य प्रदूषकों की मात्रा बढ़ जाती है, जो प्रदूषण में योगदान करती हैं।

5. पर्यटन गतिविधियाँ
उत्तराखंड एक प्रमुख पर्यटन स्थल है, जहाँ हर साल लाखों की संख्या में पर्यटक आते हैं। पर्यटकों की भारी संख्या के कारण वाहनों का उपयोग बढ़ता है, जिससे वायु प्रदूषण में इजाफा होता है।

वायु प्रदूषण के प्रभाव
स्वास्थ्य पर प्रभाव: वायु प्रदूषण के कारण उत्तराखंड के लोगों में श्वसन रोग, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और हृदय संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं। बच्चों और बुजुर्गों पर इसका सबसे अधिक असर पड़ता है।

पर्यावरण पर प्रभाव: प्रदूषण का असर न केवल इंसानों बल्कि उत्तराखंड के वन्यजीवों और पेड़-पौधों पर भी पड़ रहा है। हानिकारक गैसों के कारण मिट्टी और पानी भी प्रदूषित हो रहे हैं, जिससे जैव विविधता पर खतरा उत्पन्न हो रहा है।

जलवायु परिवर्तन: वायु प्रदूषण से ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा बढ़ रही है, जो वैश्विक तापमान में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन का कारण बन रही है। हिमालयी क्षेत्रों में इसका असर और अधिक होता है, जिससे ग्लेशियर पिघलने का खतरा बढ़ गया है।

वायु प्रदूषण नियंत्रण के उपाय
सार्वजनिक परिवहन का प्रोत्साहन: सरकार को इलेक्ट्रिक वाहन, साइकिल और अन्य पर्यावरण-अनुकूल साधनों को प्रोत्साहित करना चाहिए। इससे वाहनों से निकलने वाले धुएं को नियंत्रित किया जा सकता है।

निर्माण गतिविधियों पर नियंत्रण: निर्माण कार्यों के दौरान प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए धूल और धुआं फैलने से रोकने के उपाय किए जाने चाहिए। इसके लिए विशेष मास्क का प्रयोग और साइट्स पर पानी का छिड़काव आवश्यक है।

औद्योगिक उत्सर्जन पर नियंत्रण: कारखानों से निकलने वाले हानिकारक गैसों और कणों को नियंत्रित करने के लिए फिल्टर और अन्य आधुनिक तकनीकों का उपयोग अनिवार्य किया जाना चाहिए।

जंगलों में आग रोकथाम: जंगलों में आग लगने की घटनाओं को नियंत्रित करने के लिए विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए। इसके लिए फॉरेस्ट फायर अलार्म और अत्याधुनिक उपकरणों का उपयोग किया जा सकता है।

सार्वजनिक जागरूकता: लोगों को वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक करना बहुत महत्वपूर्ण है। स्कूलों, कॉलेजों और अन्य सार्वजनिक मंचों पर जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए ताकि लोग प्रदूषण को कम करने में योगदान दे सकें।


उत्तराखंड में वायु प्रदूषण: एक गंभीर पर्यावरणीय संकट

उत्तराखंड अपनी खूबसूरत पहाड़ियों, हरे-भरे जंगलों और स्वच्छ वातावरण के लिए जाना जाता है। लेकिन हाल के वर्षों में यहाँ भी वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है, जिससे इस राज्य की प्राकृतिक सुंदरता और पर्यावरणीय स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ रहा है। प्रदूषण का बढ़ता स्तर न केवल पर्यावरण, बल्कि यहाँ के निवासियों के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा बनता जा रहा है।

1. उत्तराखंड में वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत

वाहन उत्सर्जन: जैसे-जैसे राज्य में पर्यटन और जनसंख्या बढ़ रही है, वैसे-वैसे वाहनों की संख्या में भी वृद्धि हो रही है। पर्यटकों की भारी आवाजाही, खासकर पर्यटन स्थलों और धार्मिक स्थलों (जैसे हरिद्वार, ऋषिकेश, और नैनीताल) में, वायु प्रदूषण का एक प्रमुख कारण बनती है।
वायुजनित धूल और निर्माण कार्य: उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में तेजी से हो रहे निर्माण कार्य और सड़कों के निर्माण से वायु में धूल और मिट्टी के कणों का उत्सर्जन हो रहा है। ये कण सांस लेने में परेशानी का कारण बनते हैं और प्रदूषण के स्तर को बढ़ाते हैं। वनाग्नि (जंगल की आग): जंगलों में गर्मियों के दौरान होने वाली आग वायु प्रदूषण का एक बड़ा कारण है। जंगल की आग से उत्पन्न धुआं आसपास के वातावरण में प्रदूषक तत्वों को फैलाता है, जो हवा की गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित करता है।
औद्योगिक प्रदूषण: हालाँकि उत्तराखंड में बड़े औद्योगिक क्षेत्र कम हैं, लेकिन कुछ क्षेत्रों में स्थापित उद्योगों से निकलने वाले धुएं और हानिकारक गैसें वायु प्रदूषण में योगदान देती हैं।

2. स्वास्थ्य पर प्रभाव

वायु प्रदूषण के कारण उत्तराखंड के निवासियों को श्वसन संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। विशेष रूप से बच्चों, बुजुर्गों और कमजोर प्रतिरक्षा वाले लोगों के लिए यह समस्या गंभीर हो रही है।
हृदय रोग, अस्थमा, फेफड़ों की समस्याएँ और एलर्जी जैसे रोगों की संख्या में भी वृद्धि हुई है।
वायु में मौजूद सूक्ष्म कण (PM2.5 और PM10) फेफड़ों में जाकर सांस की नली को प्रभावित करते हैं, जिससे लंबी अवधि में फेफड़ों की गंभीर समस्याएं हो सकती हैं।

3. प्राकृतिक पर्यावरण पर प्रभाव

उत्तराखंड में प्रदूषण का बढ़ता स्तर यहाँ की जैव विविधता पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। वनस्पति और जीवों पर प्रदूषित हवा का नकारात्मक असर पड़ रहा है, जिससे यहाँ के पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन पैदा हो रहा है।
हिमालय के ग्लेशियर भी बढ़ते वायु प्रदूषण से प्रभावित हो रहे हैं, जिससे ग्लेशियरों के पिघलने की दर बढ़ रही है और क्षेत्र की जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हो रही है।

4. सरकार और समुदाय का प्रयास

सरकारी प्रयास: राज्य सरकार ने प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कई योजनाएँ और अभियान चलाए हैं। पर्यावरण मानकों का पालन करवाने के लिए औद्योगिक क्षेत्रों में निगरानी की जा रही है। इसके अलावा, पर्यटन स्थलों पर वाहनों की संख्या नियंत्रित करने और वैकल्पिक परिवहन साधनों को बढ़ावा देने के प्रयास भी किए जा रहे हैं।
स्थानीय समुदाय की भागीदारी: उत्तराखंड में कई स्थानीय संगठन और समुदाय भी वायु प्रदूषण के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए काम कर रहे हैं। वे वृक्षारोपण, कचरा प्रबंधन और स्वच्छता अभियानों के माध्यम से प्रदूषण नियंत्रण में योगदान दे रहे हैं।

5. वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपाय

हरित क्षेत्रों का विस्तार: वृक्षारोपण और हरे-भरे क्षेत्रों का विस्तार करने से प्रदूषण को कम करने में मदद मिल सकती है। हरे पेड़ और पौधे वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य प्रदूषक तत्वों को अवशोषित करते हैं।
सार्वजनिक परिवहन का प्रोत्साहन: निजी वाहनों की संख्या को कम करने और सार्वजनिक परिवहन को प्रोत्साहन देने से प्रदूषण पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
स्थायी पर्यटन प्रथाओं को बढ़ावा देना: राज्य में स्थायी पर्यटन को प्रोत्साहित करने से पर्यावरण पर दबाव को कम किया जा सकता है। इसके लिए ईको-फ्रेंडली पर्यटन, कचरा प्रबंधन, और यातायात नियंत्रण पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
जन-जागरूकता अभियान: लोगों को प्रदूषण के प्रभावों के प्रति जागरूक करना आवश्यक है ताकि वे अपने स्तर पर भी पर्यावरण के संरक्षण में सहयोग कर सकें।

25/10/2024

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला (लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)

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