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Ganga: Lifeline of India and Backbone of the Indian Economy

गंगा भारत की जीवनरेखा और भारतीय अर्थव्यवस्था का मेरूदण्ड है

भारत में बहने वाली सबसे लम्बी नदी के रूप में जाने जानी वाली पवित्र गंगा नदी देश की प्रमुख ऐतिहासिक नदी है. भागीरथी के नाम से प्रसिद्ध इस नदी का उद्गम दक्षिणी हिमालय के गोमुख से माना जाता है. जहां से निकलकर देश के विभिन्न राज्यों से होते हुए 2,525 कि.मी. का सफर तय करते हुए गंगा नदी बंगाल की खाड़ी में जाकर समुद्र में मिल जाती है. जल के रूप में जीवन प्रवाहित करने वाली गंगा नदी की उपस्थिति हर प्रकार से भारत की धरती को सुखद व समृद्ध बनाती है. एक ऐसी नदी जिसके सामने विज्ञान भी निरूत्तर दिखाई देता है, इसका वर्तमान जितना व्यापक है, इतिहास भी उतना ही गूढ़ व अद्भुत है. हिन्दुओं के चारों वेदों ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद व अर्थववेद में इस नदी की महिमा व महत्व का वर्णन किया गया है. नदी की उत्पत्ति को लेकर कई कथाएं व मान्यताएं प्रचलित हैं, जिनके आधार पर माना जाता है कि गंगा नदी का जन्म पृथ्वी पर नहीं हुआ है, बल्कि इसे स्वर्ग से पृथ्वी पर लाया गया है. इनमें से ही एक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में राजा सागर ने अश्वमेघ यज्ञ किया था. इस दौरान देवराज इन्द्र ने अपना सिंहासन खोने के डर से उनके घोड़े को पकड़कर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया था.

घोड़े को ढूंढ़ते हुए राजा सागर के साठ हजार पुत्र कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे तथा मुनि पर घोड़ा बांधने का आरोप लगाया. अपने तप में खलल और मिथ्या आरोपों के क्रोधित होकर कपिल मुनि ने राजा के साठ हजार पुत्रों को भस्म होने का श्राप दे डाला. कहा जाता है कि उसी कुल में जन्में राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों की आत्मा को शांति दिलाने के लिए भगवान विष्णु की तपस्या की और उनसे गंगा को धरती पर अवतरित करने की विनती की. किन्तु गंगा का स्वरूप इतना विकराल था, कि इसके अवतरण से पृथ्वी को खतरा हो सकता था. अतः भगवान विष्णु से भगवान शिव से गंगा नदी के प्रवाह को नियंत्रित करने की प्रार्थना की. इसके बाद भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में समाहित कर लिया और एक पतली सी धारा को धरती पर अवतरित किया. अतः धरती पर प्रवाहित होने वाली गंगा नदी संपूर्ण नहीं बल्कि नदी की महज़ एक धारा है.दूसरी मान्यता के अनुसार, जब भगवान विष्णु राजा बलि की वामन अवतार में परीक्षा लेने पहुंचे थे, तो उन्होंने अपना एक पांव आकाश में रखा था, तब ब्रह्मा जी ने उनके चरण को जिस जल से धुला था और उसे अपने कमंडल में भर लिया था. इसी जल को गंगा नदी के रूप में पृथ्वी पर अवतरित किया गया. इन दोनों कथाओं के आधार पर ही गंगा को क्रमशः भागीरथी व ब्रह्मपुत्री कहा जाता है. यही कारण से कि गंगा नदी प्राचीनकाल से ही अत्यन्त पवित्र व पूजनीय मानी जाती रही है. भारत देश को अपने आंचल में पालने- पोषने (सिंचित करने वाली) इस नदी को यहां के लोगों द्वारा ‘गंगा मैया’ कहकर संबोधित किया जाता है. गंगा नदी अपने विशेष जल और इसके विशेष गुण के कारण मूल्यवान मानी जाती है.

VARANASI, UTTAR PRADESH, INDIA – 2023/11/26: Hindu priests perform “Evening Aarati” prayers at Assi Ghat during the Ganga Aarti, a traditional and old Hindu ritual honoring the Ganges River. Dev Deepavali / Diwali is the biggest festival of light celebration in Kartik Poornima (Mid-Autumn) where devotees decorate the river bank with millions of lamps during the festival. (Photo by Avishek Das/SOPA Images/LightRocket via Getty Images)

इसका जल अपनी शुद्धता और पवित्रता को लम्बे समय तक बनाये रखता है. माना जाता है गंगोत्री से गंगासगर तक के सफर में गंगा शहरों को छू कर उन्हें तीर्थ बना देती हैं. गंगा नदी अपने विशेष गुणों वाले जल के कारण मूल्यवान मानी जाती है. गंगाजल अपनी शुद्धता और पवित्रता को लंबे समय तक बनाए रखता है. मान्यता है कि गंगा का जन्म भगवान् विष्णु के पैरों से हुआ था. मां गंगा महादेव की जटाओं में निवास करती हैं. गंगाजल के नियमित प्रयोग से रोग दूर होते हैं. वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च के बाद यह बात प्रमाणित की है कि गंगा का पानी कभी ना खराब होने का कारण उसमें मौजूद एक वायरस है। वैज्ञानिक बताते हैं कि हरिद्वार में गोमुख- गंगोत्री से आ रही गंगा के जल की गुणवत्ता पर इसलिए कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि यह हिमालय पर्वत पर उगी हुई अनेकों जीवनदायनी उपयोगी जड़ी-बूटियों, खनिज पदार्थों और लवणों को स्पर्श करता हुआ आता है। वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि हिमालय की कोख गंगोत्री से निकली गंगा के जल का ख़राब नहीं होने के कई वैज्ञानिक कारण भी हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि गंगा के पानी के भीतर एक ऐसा वायरस है जो जल को निर्मल रखता है। इस वायरस की वजह से ही गंगा का पानी कभी खराब नहीं होता, उसमें सड़न नहीं पैदा होती। आप कितने ही दिन क्यों ना गंगाजल को स्टोर करके रख लें, वह कभी बदबू नहीं मारेगा। गंगा के पानी में गंधक (सल्फर) की प्रचुर मात्रा मौजूद रहती है; इसलिए भी यह ख़राब नहीं होता। इसके अतिरिक्त कुछ भू-रासायनिक क्रियाएं भी गंगाजल में होती रहती हैं, जिससे इसमें कभी कीड़े पैदा नहीं होते।करीब सवा सौ साल पहले आगरा में तैनात ब्रिटिश डाक्टर एमई हॉकिन ने वैज्ञानिक परीक्षण से सिद्ध किया था कि हैजे का बैक्टीरिया गंगा के पानी में डालने पर कुछ ही देर में मर गया। दिलचस्प ये है कि इस समय भी वैज्ञानिक पाते हैं कि गंगा में बैक्टीरिया को मारने की क्षमता है।वैज्ञानिक कहते हैं कि गंगा के पानी में बैक्टीरिया को खाने वाले बैक्टीरियोफ़ाज वायरस होते हैं. ये वायरस बैक्टीरिया की तादाद बढ़ते ही सक्रिय होते हैं और बैक्टीरिया को मारने के बाद फिर छिप जाते अनुसंधान में प्रमाणित किया है कि गंगा के पानी में बीमारी पैदा करने वाले ई कोलाई बैक्टीरिया को मारने की क्षमता बरकरार है। यह परीक्षण ऋषिकेश और गंगोत्री के गंगा जल में किया था, जहाँ प्रदूषण ना के बराबर है.

Woman praying with oil lamp on the bank of river Ganges in the morning with hot air balloons in background ,Varanasi,Uttar Pradesh,India.

उन्होंने परीक्षण के लिए तीन तरह का गंगा जल लिया था. एक ताज़ा, दूसरा आठ साल पुराना और तीसरा सोलह साल पुराना। उन्होंने तीनों तरह के गंगा जल में ई-कोलाई बैक्टीरिया डाला. वैज्ञानिक ने पाया कि ताजे गंगा पानी में बैक्टीरिया तीन दिन जीवित रहा, आठ दिन पुराने पानी में एक एक हफ़्ते और सोलह साल पुराने पानी में 15 दिन. यानी तीनों तरह के गंगा जल में ई कोलाई बैक्टीरिया जीवित नहीं रह पाया।“गंगा के पानी में ऐसा कुछ है जो कि बीमारी पैदा करने वाले जीवाणुओं को मार देता है। उसको नियंत्रित करता है। हालांकि उन्होंने पाया कि गर्म करने से पानी की प्रतिरोधक क्षमता कुछ कम हो जाती है। अपने अनुसंधान को और आगे बढ़ाने के लिए गंगा के पानी को बहुत महीन झिल्ली से पास किया। इतनी महीन झिल्ली से गुजारने से वायरस भी अलग हो जाते हैं। लेकिन उसके बाद भी गंगा के पानी में बैक्टीरिया को मारने की क्षमता थी। गंगा को भारत सरकार ने राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया है और सबसे बढ़कर यह भारत की नदी है और सबसे बढ़कर यह भारत की नदी है, गंगा ने भारत के दिल को बंदी बना रखा है और इतिहास की शुरुआत से ही अनगिनत लाखों लोगों को अपने किनारों पर खींचती रही है। गंगा की कहानी भारतीय सभ्यता और संस्कृति का इतिहास है। महान जनपद और साम्राज्य गंगा के तट पर निर्मित और विकसित हुए। गंगा सृजन की नदी भी है। गंगा बेसिन की सांस्कृतिक विविधता अत्यधिक है। लगभग 62 धुनें, 254 प्रकार के गीत और गाथाएँ, 122 नृत्य रूप, 200 शिल्प, लोक चित्रकला की 12 शैलियाँ, 26 भाषाएँ और बोलियाँ गंगा की लहरों के साथ विकसित हुईं। पौराणिक कथाओं और महाकाव्यों में गंगा को एक पवित्र नदी माना गया है। इसे सभी धर्मों और मार्गों द्वारा माना जाता है। गंगा ने प्राचीन काल से कई कवियों और साहित्यकारों को मोहित किया है। आज, गंगा के तट पर प्रतिवर्ष लगभग 100 त्योहार और 50 प्रमुख मेले मनाए जाते हैं और प्रतिवर्ष 4-5 अरब से अधिक लोग इन्हें देखने आते हैं।

PATNA, INDIA NOVEMBER 19: Bird eye view of Chhath devotees around Ganga river on the occasion of Chhath Puja festival on November 19, 2023 in Patna, India. (Photo by Santosh Kumar/Hindustan Times via Getty Images)

लगभग 1 करोड़ लोग इससे अपनी आजीविका चलाते हैं।केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत पूर्वी क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र (ईजेडसीसी) के सदस्य राज्य असम, बिहार, झारखंड, मणिपुर, ओडिशा, सिक्किम, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह हैं। स्वीकृत योजना के अनुसार, प्रत्येक क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र को अपने क्षेत्र से परे सांस्कृतिक यात्रा नामक उत्सवों की एक श्रृंखला आयोजित करनी है। स्वच्छ भारत अभियान को भी ईजेडसीसी ने अपने हाथ में लिया है। गंगा भारत की आत्मा है. हिमालय के गौमुख से निकलकर गंगासागर के संगम पर समुद्र में मिलने वाली 2,525 किलोमीटर लंबी नदी भारतीय सभ्यता का उद्गम स्थल है. वह नदी जिसे भारत की जीवनरेखा और भारतीय अर्थव्यवस्था का मेरूदण्ड कहा जाता है, आज उसका स्वयं का जीवन खतरे में नज़र आ रहा है. वह नदी जिसमें स्नान से लोग अपने शरीर लेकर अपनी अंतरात्मा तक को स्वच्छ करते थे, आज उसी के जल को स्वच्छ करने के लिए विभिन्न अभियान व कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. गंगा नदी आज प्रदूषण का जो दंश झेल रही है, उसने उसकी प्राचीन अस्मिता और गौरवमयी अस्तित्व को संकट में धकेल दिया है.जिस नदी का जल लोग अपने घरों में यह मानकर संजों कर रखते हैं, कि इसके स्पर्श मात्र से ही मनुष्य व वस्तुएं पवित्र हो जाती हैं. जिस नदी का जल वर्षों तक अलग रखने पर भी खराब नहीं होता, वह जल आज पीने तो दूर स्नान करने योग्य भी नहीं रह गया. और इसका प्रमुख कारण है मानवीय लालसा और लापरवाही, जिसके तहत अपने घरों से लेकर उद्योगों, फैक्ट्रियों, नालों आदि तक का गंदा जल इस नदी में प्रवाहित किया गया, जिसने गंगा के जीवनदायिनी जल को जहरीला बना दिया. 2007 के एक सर्वे में इस नदी को सबसे प्रदूषित पांच नदियों की सूची में शामिल किया गया था.चिंतनीय है कि जब तक नदी में विष घोला जाता रहा, तब तक सरकारों तथा प्रशासन ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया, लेकिन अब जब लोगों को स्वयं अपने द्वारा विषाक्त किया जल पीना पड़ रहा है, तो सरकारों से स्वच्छता की गुहार लगा रहे हैं. नदी का स्वच्छ, निर्मल व पारदर्शी जल जब काला पड़ने लगा, तो प्रशासन व सरकार की भी नींद टूटी और शुरू हो गया लाखों के स्वच्छता अभियानों और करोड़ों की परियोजनाओं का दौर. अभी गंगा की सफाई को लेकर ‘स्वच्छ गंगा मिशन’ व ‘नमामि गंगे’ जैसी कई बड़ी परियोजनाएं चल रही हैं. एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल, सीपीसीबी (केन्द्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड) से लेकर सुप्रीम कोर्ट तथा केन्द्र व राज्य सरकारों तक सभी नदी के प्रदूषण को लेकर सख्त हैं, बावजूद इसके स्थितियों में कुछ विशेष परिवर्तन देखने को नहीं मिल रहा और कई जिलों व क्षेत्रों में नदी के आस- पास गंदगी व प्रदूषण अभी भी विद्यमान है. लेखक के निजी विचार व्यक्त किए हैं

Kumbh Mela Hindu Festival, 2013, occurs every 12 years. Religious pilgrims taking holy bath in the Ganges River, Allahabad.Mass of pilgrims crossing the bridges.


हरीश चन्द्र अन्डोला (लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)

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