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Kiwi Farming In Uttarakhand A Good Source of Income

बागबानों ने आर्थिकी सुदृढ़ करने को कीवी को चुना विकल्प

कीवी का इंग्लिश या वनस्पतिक नाम एक्टीनीडिया डेलीसिओसा है जो एक्‍टीनीडियासिएइ   फूल वनस्पति से सम्बंधित है। और वर्तमान में अकेले चीन में विश्वभर का 56% कीवी पैदावार किया जाता है। सन 1904 -05 में चीन के बाद न्‍यूजीलैंड ने इसकी खेती शुरु की थी ओर यह वहाँ  का राष्ट्रीय फल है। कीवी को उसका नाम एक पक्षी के नाम से मिला है। भारत में सर्वप्रथम कीवी फल बंगलौर के लालबाग गार्डन में एक शोभाकारी फल वृक्ष के रूप में1960 क्व आस-पास  लगाया गया तथा बाद में (सन्‌ 1967-69) में भारतीय अनुसंधान संस्थान के राष्ट्रीय पादप आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो, क्षेत्रीय केन्द्र फागली में लगाया गया। इसके बाद पुनः कई अन्य प्रजातियां न्यूजीलैंड से आयात भारत में  लगाई गई। आज कीवी की खेती  कम और मध्यम ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रो जैसे उत्तराखण्ड, हिमाचल, सिक्किम, मेघालय, अरूणाचल प्रदेश, नीलगिरी की पहाडियों और अन्य क्षेत्रों में फैल गई है। उत्तराखंड ने इसको खेती की अन्य शीतोष्ण फलों के साथ एक अच्छे भविष्य वाले फल के रूप में अंगीकृत कर लिया है। पिछले कुछ दशकों में कीवी न्यूज़ीलैंड के साथ-साथ विश्वभर में अत्यन्त लोकप्रिय हो गया है।

उत्तराखंड के किसानों को भी कीवी की बागवानी में काफी अच्छा रुझान मिल रहा है, इसकी खेती उत्तराखंड के वातावरण के हिसाब से बिल्कुल सही होती है। उत्तराखंड में कीवी सर्वप्रथम 1984- 85 के आस-पास में इटली के वैज्ञानिकों की देख रेख में इटली फल विकास परियोजना के तहत राजकीय उद्यान मगरा टिहरी गढ़वाल में लाया गया थाजिसमें कीवी के 100 से ज़्यादा विभिन्न प्रजातियों के पौधे शामिल थे,जिनसे कीवी का अच्छा उत्पादन आज भी प्राप्त हो रहा है। उत्तराखंड ने पुनः वर्ष 1991-92 में राष्ट्रीय पादप अनुवांशिक संस्थान फागली शिमला हिमाचल प्रदेश से कीवी की विभिन्न प्रजातियों के पौधे मंगा कर प्रयोग के ल‍िए राज्य के विभिन्न उद्यान शोध केंद्रों यथा चौवटिया रानीखेत, कोठियालसैण (चमोली) चकरौता (देहरादून) पिथौरागढ़, डुंण्डा (उत्तरकाशी) आदि स्थानों में लगाये गये जिनसे कीवी की काफ़ी अच्छी उपज मिली।राज्य में कीवी बागवानी की सफलता को देखते हुए कई बागवानों ने बागवानी बोर्ड व उद्यान विभाग की सहायता से कई नए कीवी बागों का निर्माण किया। कीवी फल पेड़ पर उगाया जाता  है। कीवी का फल देखने में चीकू की तरह का लगता है। कीवी बाहर से भूरे रंग का होता है। जब इसे काटा जाता है तो यह अंदर से हरे रंग का होता है। कीवी के पेड़ों की लंबाई लगभग 9 मीटर तक होती है। अंगूर की बेलों की तरह ही इसकी बेलें बढ़ती हैं।

किवी फल पर्णपाती पौधा है हमारे राज्य में यह मध्यवर्ती क्षेत्रों में 600 से 1500 मीटर की उँचाई तक सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। क्‍योंक‍ि इन क्षेत्रों की जलवायु व परिस्थितियां इसके अत्याधिक अनुरूप है। कीवी फल में फूल अप्रैल में आते हैं और उस समय पाले का प्रकोप फल बनने में बाधक होता है। अतः जिन क्षेत्रों में पाले की समस्या है वहां इस फल की बागबानी सफलतापूर्वक नहीं हो सकती, वे क्षेत्र जिनका तापमान गर्मियों में 35 डिग्री से कम रहता है तथा तेज हवाएं चलती हो,वहाँ इसकी खेत उपयुक्त मात्र में हो सकती है। कीवी के लिए सूखे महीनों मई-जून और सितम्बर अक्टूबर में सिंचाई का पूरा प्रबन्ध होना चाहिए। कीवी फल में नर व मादा दो प्रकार की किस्में होती है। इसमें ज्यादातर एलीसन, मुतवा और तमूरी नर किस्में बाग मे लगाई जाती है। एवोट, एलीसन ब्रूनों, हैवर्ड और मोन्टी मुख्य मादा किस्में है। एलीसन व मोन्टी जिसकी मिठास सबसे अधिक होती है।कीवी दो प्रकार की होती है- ग्रीन कीवी और गोल्ड कीवी। ग्रीन कीवी अंदर से हरे रंग का होता है जिसमें एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा बहुत ही कम पाई जाती है जबकि गोल्ड कीवी अंदर से गहरे पीले रंग का होता है।

यह ग्रीन कीवी से बहुत ज्यादा स्वस्थ और रसीली होती है। कीवी का फल भूरे रंग का, लम्बूतरा, मुर्गी के अण्डे के आकार का होता है,छिलके पर बारीक रोयें होते हैं, जो कि फल पकने पर रगड़ कर उतारे जा सकते हैं। कीवी रेशेदार व फल गूदा हल्के हरे रंग का होता है व इसमें काले रंग के छोटे-छोटे बीज होते हैं। फल पकने के बाद छिलके को उतारकर सारा फल (बीजों सहित) खाया जाता है। यदि फल अधिक पककर गल जाए तो इसे छेद करके आम की तरह चूस कर भी खाया जा सकता है। इसके अलावा कीवी फल से जैम, स्क्वेश, आसव तथा सुखाकर पापड़ और कैण्डी के रूप में भी प्रयोग में लाया जा सकता है। कीवी में इतनी शक्ति है की यह बीपी, कोलेस्ट्रोल, चिकनगुनिया, डेंगू, त्वचा, अनिंद्र, पाचन तंत्र, इम्युनिटी सिस्टम, रक्त, गर्भावस्था, श्वसन, दर्द, ह्रदय, डायबिटीज, वजन आदि को स्वस्थ और संतुलित रखने के गुण पाए जाते हैं। कीवी फल के 100 ग्राम खाने योग्य भाग में क्रमशः ठोस पदार्थ 15.20 प्रतिशत, अम्ल 1-1.6 प्रतिशत, शर्करा 7.5-13.0 प्रतिशत, प्रोटीन 0.11-1.2 प्रतिशत, तथा रेशा 1.1-2.9 प्रतिशत मिलता है। इसके अलावा कैल्शियम 16-51 मिग्रा., क्लोराइड 39-65 मिग्रा., मैग्नीशियम 10-32 मिग्रा., नाइट्रोजन 93-163 मिग्रा., फास्फोरस 22-67 मिग्रा., पोटैशियम 185-576 मिग्रा., सोडियम 2.8-4.7 मिग्रा0, सल्फर 25 मिग्रा. तथा विटामिन-ए 175 आई यू., पॉलीसेकेराइड, कैरोटीनोड, फ्लेवोनोइड, सेरोटोनिन, विटामिन बी-6, विटामिन बी-12, लोहा(.2 मिलीग्राम), तांबा, विटामिन के (1%), विटामिन-सी 80-120 मि.ग्रा. तथा विटामिन-बी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। विटामिन ई, विटामिन के और प्रचुर मात्रा में पोटैशियम, फोलेट पाये जाते हैं। किवी फल में अधिक मात्रा में एंटी ऑक्सीडेंट पाया जाता है।

यह एंटी-ऑक्सीडेंट शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने तथा शरीर को विभिन्न बीमारियों से बचाने में मददगार होता है। विटामिन-सी तो नीबू प्रजाति के फलों की अपेक्षा तीन से चार गुना अधिक होता है। उत्तराखंड में पलायन रोकने व रोजगार की प्रबल संभावना को देखते हुए कीवी इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि जिस समय किवी फल तैयार होता है, उन दिनो बाजार में ताजे फलों के अभाव होता है। इस कारण कास्तकार द्वारा काफी आर्थिक लाभ उठाया जा सकता है। इसे कोर्ड स्टोर में भी चार महीने तक आसानी से सुरक्षित रखा जा सकता है। फलों को दूर भेजने में भी कोई हानि नहीं होती, क्योंकि वह अधिक टिकाऊ है कमरे के तापमान पर इसे एक माह तक रखा जा सकता है इन्हीं कारणों से बाजार में इसको लम्बे समय तक बेच कर अधिक लाभ कमाया जा सकता है। विदेशी पर्यटकों में यह फल अधिक लोकप्रिय होने के कारण दिल्ली व अन्य बड़े शहरों मे इसे आसानी से अच्छे दामों पर बेचा जा सकता है। राज्य के आमजन में कीवी फल की स्वीकार्यता अभी तक पूर्णतः नहीं बन सकी है जिस कारण स्थानीय बाजार में यह फल कम ही बिक पाता है बाहर भेजने के लिए इतना उत्पादन नहीं हो पाता किबाहरी मार्केट तक इसे भेजा जाए। दूसरी तरह जहाँ उत्तराखंड में कीवी फल उत्पादन का भविष्य दिखाई देता है वहीं समय पर कीवी फल पौध उपलब्ध न होने तथा तकनीकी जानकारी का अभाव व स्थानीय बाजार में कीवी फलों के उचित दाम न मिल पाने के कारण आज भी कीवी फल उत्पादन व्यवसायिक रूप नहीं ले सका।

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला(लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं)

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