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Exponential Increases In Pollutant Level Of Indian River System – Threat to Ecosystem

कभी नहीं हुआ नदियों का ऐसा हाल

Dirty water with garbage in water pollution in public canal or river sewage from the city. Dirty effluent waste water treatment solutions in urban city.

भारत की 22 नदियों और उसकी सहायक जलधाराओं में दो या उससे अधिक हानिकारक धातुओं के मौजूद
होने की पुष्टि हुई है। इन नदियों से 37 निगरानी स्टेशनों से लिए पानी के नमूनों में आर्सेनिक, कैडमियम,
क्रोमियम, तांबा, लोहा, सीसा, पारा और निकल जैसी जहरीली धातुओं का स्तर सुरक्षित सीमा से अधिक
पाया गया है। यह जानकारी अगस्त 2024 में प्रकाशित एक रिपोर्ट में सामने आई है।इस बारे में केंद्रीय जल
आयोग (सीडब्ल्यूसी) द्वारा किए एक अध्ययन से पता चला है कि कि भारत की 81 नदियों और उसकी
सहायक जलधाराओं में एक या उससे अधिक हानिकारक धातुओं (हैवी मेटल्स) का स्तर बहुत अधिक है।इस
रिपोर्ट में भारत की दस नदी घाटियों के पानी में नौ हानिकारक धातुओं की जांच की गई। इसके जो नतीजे
सामने आए हैं उनसे पता चला है कि 14 नदियों के 30 स्टेशनों पर आर्सेनिक मौजूद है, जबकि 11 नदियों
में 18 जगहों पर पारा और 16 नदियों के 16 निगरानी स्टेशनों से लिए पानी के नमूनों में क्रोमियम की
मौजूदगी की पुष्टि हुई है।

Dead fish and plastic pollution on sandy beach. Environmental problem – plastics contaminate seafood. High quality photo

सीडब्ल्यूसी द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक, जनवरी से दिसंबर 2022 के बीच
भारत के 328 नदी निगरानी स्टेशनों में से 141 में एक या उससे अधिक हानिकारक धातुओं का स्तर
खतरनाक रूप से अधिक था। मतलब की 43 फीसदी स्टेशनों में जल गुणवत्ता की स्थिति खराब थी।रिपोर्ट
के मुताबिक 13 राज्यों के 99 जिलों में 81 नदियों और सहायक जलधाराओं पर स्थापित स्टेशनों ने
आर्सेनिक, कैडमियम, तांबा, लोहा, सीसा, पारा और निकल जैसी एक या उससे ज्यादा हानिकारक धातुओं
के बेहद अधिक होने का खुलासा किया है। उदाहरण के लिए दिल्ली में यमुना नदी के पल्ला यू/एस
डब्ल्यूक्यूएमएस स्टेशन से लिए नमूने में पारे का स्तर भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) द्वारा निर्धारित
सुरक्षित सीमा से नौ गुना अधिक था।गौरतलब है कि भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने पानी में पारे के
लिए एक माइक्रोग्राम प्रति लीटर की सीमा तय की है। “स्टेटस ऑफ ट्रेस एंड टॉक्सिक मेटल इन रीवर्स ऑफ
इंडिया” नामक इस रिपोर्ट में भारी धातुओं की व्यापक मौजूदगी का पता चला है। वहीं कई स्टेशनों पर
आर्सेनिक, कैडमियम, क्रोमियम, तांबा, लोहा, सीसा, पारा और निकल जैसी जहरीली धातुओं का स्तर तय
सीमा से कहीं ज्यादा थारिपोर्ट ने इस बात की भी पुष्टि की है कि 141 स्टेशनों में से 74 फीसदी यानी 104
स्टेशनों पर एक न एक हा।निकारक धातु भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा निर्धारित सुरक्षित सीमा से कहीं
ज्यादा पाई गई।

Scientist or biologist wearing protective uniforms analyze the waste water flow to the sea

वहीं इनमें से 49 स्टेशनों पर केवल लोहे का स्तर तय सीमा से अधिक था।नौ नदियों और
उनकी सहायक जलधाराओं पर मौजूद 17 स्टेशनों पर आर्सेनिक का स्तर सुरक्षित सीमा से कहीं अधिक
पाया गया। "नदियों का जल प्राकृतिक स्रोतों के साथ-साथ अब मानवीय गतिविधियों के कारण बढ़ रही
जहरीली धातुओं से भी दूषित हो रहा है।& quot; उनके मुताबिक पानी में इन धातुओं की सुरक्षित सीमा से ज्यादा
मौजूदगी पौधों और जानवरों के लिए गंभीर खतरा बन सकती हैं, हालांकि इसकी तय सीमा से ज्यादा
मौजूदगी जहर का काम कर सकती है। दूसरी ओर पारा, कैडमियम और सीसा जैसी अन्य भारी धातुएं सीधे
तौर पर इंसानों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होती हैं।यह भारी धातुएं बेहद जहरीली होती हैं, और
आसानी से विघटित नहीं होतीं। इसके साथ ही यह जीवों में समय के साथ जमा होने की प्रवृत्ति इन्हें मानव
स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए गंभीर खतरा बनाती है।

Water sampling, Water quality checking

स्वास्थ्य पर पड़ते प्रभावों पर नजर डालें तो आर्सेनिक युक्त पानी के सेवन से त्वचा पर घाव हो सकते हैं, जो आर्सेनिक से होने वाली विषाक्तता का संकेत
है। वहीं आर्सेनिकोसिस एक दीर्घकालिक बीमारी है, जो लंबे समय तक आर्सेनिक के उच्च स्तर वाले पानी को
पीने से होती है।हाल ही में किए गए शोध से पता चला है कि कैडमियम की बेहद कम मात्रा के संपर्क में
आने से भी ऑस्टियोपोरोसिस और फ्रैक्चर जैसी हड्डियों की समस्याएं हो सकती हैं। वहीं पारे का उच्च स्तर
नसों, मस्तिष्क और गुर्दे को नुकसान पहुंचा सकता है। इसके साथ ही फेफड़ों में जलन, आंखों की समस्याएं,
त्वचा पर चकत्ते, उल्टी और दस्त का कारण बन सकता यमुना नदी का उद्गम स्थान यमुनोत्री से है। ऐसा
कहा जाता है कि यमुनोत्री दर्शन के बिना तीर्थयात्रियों की यात्रा अधूरी होती है। समानांतर बहते हुए यह

Chemical waste disposal site, Greater Manchester, UK.

नदी प्रयाग में गंगा में मिल जाती है। हिमालय पर इसके उद्गम के पास एक चोटी का नाम बन्दरपुच्छ है।
गढ़वाल क्षेत्र की यह सबसे बड़ी चो़टी है यह करीब 6500 मीटर ऊंची है। अपने उद्गम स्थान से आगे बढ़कर
कई मील तक विशाल हिमगारों में यह नदी बहती हुई पहाड़ी ढलानों से अत्यन्त तीव्रतापूर्वक उतरती हुई
इसकी धारा दूर तक बहती चली जाती है। यमुना नदी भारत की सबसे बड़ी सहायक नदी है, गंगा नदी
बेसिन की दूसरी सबसे बड़ी सहायक नदी है। यमुना का उद्गम यमुनोत्री ग्लेशियर से 20955 फीट की
ऊंचाई पर होता है, जो बंदरपंच में स्थित है, जो उत्तराखंड में निचले हिमालय की चोटी है। प्रयागराज में
त्रिवेणी संगम में यमुना नदी गंगा नदी में विलीन हो जाती है, जो हिंदुओं के लिए एक पवित्र स्थान है।
यमुना नदी का नाम भारतीय भाषा संस्कृत से लिया गया है, जिसका अर्थ है जुड़वां। हिंदू धार्मिक ग्रंथों
ऋग्वेद और अथर्ववेद में यमुना नदी का उल्लेख मिलता है।

Industrial Waste.

यमुना नदी का संबंध हिंदू भगवान कृष्ण के जन्म से भी है।इसलिए यह भारत की सबसे पवित्र नदियों (भारत की 7 सबसे पवित्र नदियां ) में से एक मानी
जाती है। की? आज हमें यह समझने की आवश्यकता है कि दुनिया की एक चौथाई आबादी पानी की कमी से
जूझ रही है। पानी की कमी से जूझ रहे 17 देशों की सूची में भारत 13वें स्थान पर है। क्या ये आंकड़े भविष्य
में जल संकट की ओर संकेत नहीं कर रहे हैं? हमें समझना होगा कि नदियां जीवनदायिनी हैं। नदियों द्वारा
सीधे अथवा उनके द्वारा ट्यूबवेल और नहरों आदि से बड़े पैमाने पर सिंचाई होती है। औद्योगिक क्षेत्र को भी
पानी की बहुत आवश्यकता है जिसकी पूर्ति का प्रमुख स्रोत नदियां ही हैं। आज देश की छोटी बड़ी सैकड़ों
नदियां मर चुकी हैं,कई मरणासन्न हैं। ऐसे में यमुना जैसी महत्वपूर्ण नदी की उपेक्षा घातक सिद्ध होगी।आज
हमें समझना होगा कि यमुना केवल एक नदी नहीं है अपितु वह जीवन का स्रोत और संस्कृति है।

आदि कवि महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में यमुना को सूर्य कन्या यमुना कहकर संबोधित किया है तो भगवान श्रीकृष्ण
के जन्म से ही अनेक लीलाएं यमुना के साथ जुड़ी हुई हैं। लोक जीवन में यमुना की पूजा होती है। देश के
अनेक क्षेत्रों में यमुना पेयजल, कृषि और औद्योगिक जल आपूर्ति का बड़ा स्रोत है लेकिन आज सरकार की
उपेक्षा,भ्रष्टाचार, समग्र नीति और समन्वय की कमी आदि विभिन्न कारणों से प्रदूषण का शिकार होकर नाले
में तब्दील हो चुकी है। वह पुनर्जीवन की आस में है। यद्यपि दिल्ली के उपराज्यपाल की अध्यक्षता में यमुना
नदी के कायाकल्प के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया है।
समिति यमुना के कायाकल्प हेतु कार्य प्रगति व लक्ष्यों आदि पर समय-समय पर समीक्षा कर रही है लेकिन
अभी भी यमुना की बदहाली सर्वविदित है।यमुना को पुनर्जीवित करने के लिए यह आवश्यक है कि यमुना में
गिर रहे नालों, अशोधित सीवरेज, मलबे एवं पूजा सामग्री आदि को तत्काल प्रभाव से रोका जाए।

Slow motion shot of water sewage flowing through 2 pipe openings

हथिनीकुंड बैराज से यमुना में लगातार पर्याप्त जल छोड़ा जाए। यमुना को प्रदूषण मुक्त, अविरल और
पुनर्जीवित करने के लिए यह भी आवश्यक है कि हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में शासन-प्रशासन,
स्थानीय निकाय और जनप्रतिनिधियों में समुचित समन्वय हो, समग्रता में योजनाएं बनें और वे तत्काल
प्रभाव से लागू हों। संबंधित अधिकारियों अथवा निकायों की जिम्मेदारी तय की जाए और उल्लंघन पर
दंडात्मक प्रविधान हों। यमुना तो मां है, यह केवल एक नदी के पुनर्जीवन की आस नहीं है अपितु मां और
मानवता के पुनर्जीवन की आस है। .लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला (लेखक वर्तमान में दूनविश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।

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