Freesabmilega.com

Narayan Datt Tiwari Uttarakhand की छवि विकासपुरूष’ की रही

नारायण दत्त तिवारी की छवि विकासपुरूष’ की रही

भारतीय राजनीति में लंबी पारी खेलने वाले नारायण दत्त तिवारी के जीवन में आये कई तरह के विवादों के बावजूद आमजन में उनकी छवि ‘विकास पुरूष’ की ही रही। वह देश के एकमात्र ऐसे नेता थे जो दो राज्यों के मुख्यमंत्री बने। उत्तराखंड के अल्मोडा जिले में 18 अक्टूबर, 1925 को जन्मे तिवारी के करियर में कई अनूठी उपलब्धियां भी रहीं। वह एकमात्र ऐसे राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने दो प्रदेशों-उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड-के मुख्यमंत्री पद को संभाला। उत्तराखंड के 24 सालों के इतिहास में वह एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री रहे जो पांच वर्ष का अपना कार्यकाल पूरा कर पाये। तिवारी उत्तर प्रदेश के आखिरी कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे और उसके बाद ही गैर कांग्रेसी दलों को उत्तर प्रदेश जैसे बडे राज्य में शासन का मौका मिला। तिवारी तीन बार अविभाजित उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। वह पहली बार 1976 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे।

इंदिरा गांधी, संजय गांधी और राजीव गांधी के विश्वासपात्रों में गिने जाने वाले तिवारी केंद्र में वित्त मंत्री, उद्योग मंत्री और योजना आयोग के उपाध्यक्ष जैसे कई उच्च पदों पर रहे। विवादों से इतर तिवारी के सम्मान पर कभी कोई आंच नहीं आयी और विकास को लेकर उनकी सोच और उसे दिशा देने की काबिलियत के कारण उनके ऊंचे कद का मुकाबला करना उनकी पार्टी के नेताओं के अलावा विपक्षी नेताओं तक के लिए भी कठिन रहा। यही कारण है कि उनकी छवि ‘विकास पुरूष’ की बनी और इसका लाभ उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कई हिस्सों को मिला। माना जाता है कि 2002 में उत्तराखंड को औद्योगिक पैकेज की सौगात उनके तत्कालीन प्रधानमंत्री से अच्छे संबंधों के कारण ही मिली। इस पैकेज के मिलने से हरिद्वार और पंतनगर में विश्वस्तरीय औद्योगिक आस्थान स्थापित हुए जिनमें लगभग सभी नामचीन कंपनियों ने अपनी इकाइयां लगायीं। इस जबरदस्त औद्योगिकीकरण से सीधे तौर पर रोजगार के अवसर मिलने के अलावा प्रदेश की आर्थिक स्थिति को भी मजबूती मिली। महत्वपूर्ण बात है कि रामदेव के पतंजलि योगपीठ के व्यापारिक ऊंचाइयों को हासिल करने के पीछे भी तिवारी का ही हाथ माना जाता है। उनके कार्यकाल में पतंजलि को हरिद्वार में कम दरों पर भूमि आवंटित की गयी। तिवारी ने नोएडा शहर बनाने का श्रेय भी खुद को दिया था और कहा था कि इसका गौरव उन्हें ही मिला था।

ऊधमसिंह नगर जिले में भी रूद्रपुर, काशीपुर के विकास का सेहरा भी तिवारी के सिर ही बांधा जाता है। अपनी विकास यात्रा से हमेशा संतुष्ट दिखायी देने वाले तिवारी को हालांकि, प्रधानमंत्री न बन पाने का जीवन भर मलाल रहा। वर्ष 1991 में हुए लोकसभा चुनावों में तिवारी नैनीताल लोकसभा सीट से हार गये और राजीव गांधी की मृत्यु के बाद कांग्रेस में प्रधानमंत्री के लिए योग्य उम्मीदवार की तलाश के दौरान सांसद न होने के कारण उनका नाम दौड़ में पीछे छूट गया। तिवारी ने 1990 दशक के मध्य में पी वी नरसिंह राव से मतभेद होने के बाद कांग्रेस को छोड़कर अपनी एक अलग पार्टी अखिल भारतीय इंदिरा कांग्रेस (तिवारी) बना ली थी। इसमें उनके साथ अर्जुन सिंह, आर कुमारमंगल जैसे कुछ कांग्रेस नेता भी शामिल हुए थे। हालांकि सोनिया गांधी के कांग्रेस की कमान संभालने के बाद वह फिर कांग्रेस में आ गये थे। उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी। वह विश्वविद्यालय के छात्र संघ के अध्यक्ष भी थे। अविभाजित उत्तराखंड के दौर में राज्य के उच्चशिक्षा संस्थान आगरा विश्वविद्यालय के अधीन थे। पहाड़ के विद्यार्थियों की परेशानी और अलग विवि बनाने की मांग के बीच 1973 में कुमाऊं एवं गढ़वाल विवि की सौगात मिली। इसका श्रेय उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुण और तत्कालीन वित्त मंत्री नारायण दत्त तिवारी को दिया जाता है।

वहीं, कुमाऊं विवि के मुख्य प्रशासनिक भवन का शिलान्यास 1976 में सीएम रहते हुए नारायण दत्त तिवारी ने किया। उत्तराखंड में विकास की नीव रखने वाले, शैक्षिक एवं औद्योयोगिक क्रांति के जनक स्व. नारायण दत्त तिवारी हैं प्रदेश के विकास में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। प्रदेश में दून, उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय संस्कृत विश्वविद्यालय वीर माधो सिंह भण्डारी उत्तराखण्ड प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय एवं सिडकुल जैसे उद्यमों की स्थापना एन डी तिवारी के कार्यक्राल में हुई। उत्तराखंड के स्विट्जरलैंड कहे जाने वाले भीमताल की पहली पर्वतीय औद्योगिक घाटी उन्हीं में से एक है। उन्होंने प्रदेश के विकास में कई मील के पत्थर स्थापित किए। कभी लोगों की कलाइयों की शान कही जाने वाली हिंदुस्तान मशीन टूल्स (एचएमटी) का रानीबाग का कारखाना भी तिवारी की ही देन है। एनडी तिवारी विशाल व्यक्तित्व के धनी थे।

दूरदर्शिता उनके अंदर कूट-कूट कर भरी थी। केंद्र में उद्योग मंत्री रहते हुए 1980 के दशक में ही उन्होंने उत्तराखंड की पलायन की समस्या को भांप लिया था। इसीलिए उन्होंने पर्वतीय क्षेत्रों में छोटे औद्योगिक आस्थान खोलने पर जोर दिया। लगभग 100 एकड़ में स्थापित भीमताल की औद्योगिक घाटी उनकी इसी सोच का परिणाम रही। पर्वतीय क्षेत्रों में स्थापित होने वाली यह पहली औद्योगिक विकास यात्रा थी। प्राकृतिक रूप से बेहद खूबसूरत भीमताल को इलेक्ट्रॉनिक घाटी के रूप में विकसित करने का उनका सपना था। यूपी राज्य औद्योगिक निगम लिमिटेड के सहयोग से स्थापित इस इलेक्ट्रॉनिक घाटी में लगभग 100 से अधिक औद्योगिक इकाइयां स्थापित हुईं। इन इकाइयों ने यहां एक दशक से अधिक समय तक उत्पादन किया। सैकड़ों स्थानीय युवाओं को रोजगार मिला। जिसके कारण कुछ हद तक पहाड़ों से होने वाले पलायन पर भी रोक लगी।

तिवारी ने काशीपुर एवं कुमाऊं के अन्य क्षेत्रों को भी विकसित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। काशीपुर को भी उद्योग के रूप में उन्होंने अनेक तोहफे दिए। इनमें से कई औद्योगिक इकाइयां आज भी काम कर रही हैं और राज्य के विकास में सहयोग कर रही हैं। बतौर पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने नवगठित राज्य के हित में अनेक कल्याणकारी योजनाएं संचालित कीं। देहरादून, हरिद्वार एवं उधमसिंह नगर को औद्योगिक नगरी के रूप में विकसित करने में उनका अहम योगदान रहा। अपने राज्य की सेवा की, जो उन्हें आज तक ऐसा करने वाला एकमात्र सीएम बनाता है। उन्होंने उत्तराखंड के शुरुआती विकास में एक उल्लेखनीय भूमिका निभाई, जो राज्य के औद्योगिक क्षेत्र को मजबूत करने और इसे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने पर केंद्रित था। राज्य की आर्थिक प्रगति में उल्लेखनीय योगदान देने के लिए एनडी तिवारी को प्यार से ‘विकास पुरुष’ कहा जाता था। उन्होंने केंद्र में अपनी विपक्षी सरकार, जो अटल बिहारी वाजपेयी सरकार थी, को राजी किया और राज्य के लिए एक औद्योगिक पैकेज हासिल करने में कामयाब रहे और कई उद्योगपतियों को निवेश करने और व्यवसाय स्थापित करने के लिए आमंत्रित किया। बजाज ऑटो के चेयरमैन राहुल बजाज ने भी एनडी तिवारी के कहने पर पंतनगर में प्लांट लगाने का श्रेय उन्हें दिया। गए।।लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।


डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला (लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।)

Exit mobile version