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River Ganga गंगा दुनिया की इकलौती मीठे जल वाली नदी

गंगा दुनिया की इकलौती मीठे जल वाली नदी

गंगा नदी भारत की सांस्कृतिक धरोहर भी है. जो राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने का काम करती है. मां गंगा के बिना भारतीय सभ्यता अधूरी है. देश में विविध भाषाएं, धर्म, संस्कृति, संगीत होने के बावजूद कुछ ऐसी चीजें हैं, जो हमें बांधे रखती हैं. एकजुट रखती हैंमहाकुम्भ के दौरान अब तक 60 करोड़ से अधिक श्रद्धालु गंगा में पवित्र डुबकी लगा चुके हैं। इसके बावजूद गंगा जल पूरी तरह से रोगाणुमुक्त है। गंगा नदी की अपनी अद्भुत स्व-शुद्धिकरण क्षमता इस खतरे को तुरंत टाल देती है। इसका रहस्य गंगा में पाए जाने वाले बैक्टीरियोफेज हैं। जो प्राकृतिक रूप से गंगा जल की सुरक्षा का कार्य करते हैं। ये अपनी संख्या से 50 गुना रोगाणुओं को मारकर उसका आरएनए तक बदल देते हैं।

गंगा दुनिया की इकलौती मीठे जल वाली नदी है, जिसमें एक साथ इतने बैक्टीरिया मारने की अद्भुत ताकत है। मानवजनित सभी प्रदूषण को नष्ट करने के लिए इसमें 1100 प्रकार के बैक्टीरियोफेज मौजूद हैं। मिसाइलमैन एपीजे अब्दुल कलाम भी जिस वैज्ञानिक का लोहा मानते रहे, उन्हीं पद्मश्री डॉ.अजय सोनकर ने महाकुम्भ में गंगा जल को लेकर अब सबसे बड़ा खुलासा किया है। भारत के वो वैज्ञानिक हैं, जिन्होंने अपने अनुसंधान से समुद्र में मोती बनाने की विधा में जापान के एकाधिकार को न सिर्फ समाप्त कर दिया बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा और बहुमूल्य मोती बना कर पूरी एक ग्लोबल वेव पैदा कर दी थी। डॉ अजय ने नीदरलैंड की वेगेनिंगन यूनिवर्सिटी से कैंसर और न्यूट्रिशन पर बड़ा काम किया है। इसके अलावा न्यूट्रीशन, हार्ट की बीमारियों और डायबिटीज पर भी इनका रिसर्च है। राइस यूनिवर्सिटी, ह्यूस्टन अमेरिका से डीएनए को लेकर बायोलॉजिकल जेनेटिक कोड पर इनके काम को पूरा अमेरिका सम्मान की दृष्टि से देखता है। 2016 के नोबेल विजेता जापानी वैज्ञानिक डॉ योशिनोरी ओहसुमी के साथ टोक्यो इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से सेल बायोलॉजी एंड ऑटोफैगी पर खूब काम किया है। इसके अलावा, हार्वर्ड मेडिकल स्कूल से कॉग्निटिव फिटनेस और सेंसिटिव गट्स पर दो बार काम कर चुके हैं। 2004 में डॉ अजय को बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी के जे. सी बोस इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ साइंस में लाइफ टाइम प्रोफेसर अपॉइंट किया गया। इससे पहले 2000 में पूर्वांचल यूनिवर्सिटी डॉक्टर ऑफ साइंस की उपाधि से सम्मानित कर चुकी है।मां गंगा उनमें से एक हैं. मां गंगा की निर्मलता के लिए योगदान करना हम सभी का राष्ट्रीय और नैतिक दायित्व है. ऐसे में हम स्वयं जागरूक हों और गंगा की स्वच्छता हेतु सभी को जागृत करें. गंगा के साथ संस्कृति और संस्कारों का संरक्षण जरूरी है. गंगा तट पर ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण तथा प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर कई पर्यटन स्थल हैं, जो राष्ट्रीय आय का स्रोत भी हैं.

महाकुंभ में स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण का अद्भुत संगम, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 27 फरवरी को उत्तरकाशी जिले के मुखबा और हर्षिक का दौरा करने वाले है। इस दौरे से पूर्व गंगा विचार मंच के प्रान्त संयोजक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। इस पत्र में लिखा गया है कि मां गंगा यमुना सहित देश की सभी नदियों में वस्त्र, पूजा, श्रृंगार आदि विसर्जित करने पर रोक लगे, और नदियों में जल समाधि पर प्रतिबंध लगे। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से अनुरोध किया है कि इस पत्र के विषयों को ‘मन की बात’ में शामिल किया जाये। गौरतलब है कि मां गंगा जी के धाम गंगोत्री-यमुनोत्री में श्रद्धालु महिलाएं मां गंगा-यमुना जी में बडी संख्या में वस्त्र आदि प्रवाहित कर मां गंगा-यमुना को उसके ही उद्गम में मैला करने का काम कर रहे हैं। गंगोत्री-यमुनोत्री में एक दिन में 10 से 15 हजार श्रद्धालु मां गंगा-यमुना में पवित्र स्नान करते हैं। बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं द्वारा भी मां गंगा-यमुना जी को वस्त्र आदि भेंट कर जलधारा में प्रवाहित करते हैं।दुःखद पहलू यह है कि महिला तीर्थयात्रियों द्वारा बड़ी संख्या में मां गंगा-यमुना जी में श्रृंगार का सामान जैसे चूड़ी, बिन्दी, लिपिस्टिक, कंगी, कॉजल, चुनरी, सीसा, सिन्दूर व सभी श्रृंगार के वस्त्र धोती, साड़ी प्रवाहित की जाती है।

बड़ी संख्या में कई श्रद्धालु पुराने कपड़े भी विसर्जित करते हैं। गंगा विचार मंच के प्रांत संयोजक विगत कई वर्षों से गंगोत्री धाम और यमुनोत्री धाम में गंगा प्रहरियों के साथ धाम में आने वाले सभी श्रद्धालुओं से अपील करता आ रहा है, कि जलधारा में किसी भी तरह के वस्त्र, पूजा, श्रृगांर सामग्री भेंट कर उसे प्रदूषित न करें। गंगा विचार मंच विगत 10 वर्षों से गंगोत्री और यमुनोत्री धाम में मां गंगा और मां यमुना जी की जलधारा से बहाये गये वस्त्रों को एकत्रित करने का कार्य करता आ रहा है।आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अथक प्रयासों से गंगा स्वच्छता पर बहुत कुछ होने के बावजूद मां गंगा जी व्यथित व दुःखी है। दरअसल साधु समाज के दशनामी संप्रदाय के गिरीपर्वत, सागर, पुरी, भारती, सरस्वती वन, अरण्य तीर्थ और आश्रम के सन्यासियों और समाज के कुछ और वर्गों में शरीर त्यागने पर जलसमाधि देने की परंपरा है।मां गंगा जी में तरह-तरह के प्रदूषण के साथ ही सबसे बड़ी समस्या जलसमाधि की भी है। भारतीय समाज के विभिन्न हिस्सों व विभिन्न वर्गों में जलसमाधि देने की परंपरा है जो कि ठीक नहीं है। कई साधु संतो ने गंगा में प्रदूषण की समस्या को देखते हुए भूसमाधि लेने की घोषणा की है। यदि प्रधानमंत्री अपने ‘मन की बात’ के आगामी अंक में गंगा को शामिल कर लें तो गंगा स्वच्छता अभियान में ये मील का पत्थर साबित होंगे।उत्तराखंड की संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण का विशेष स्थान है। हम उस देवभूमि से हैं, जहां पशु-पक्षियों और पेड़ों से प्रेम करना सिखाया जाता है, प्रकृति को सम्मान देना सिखाया जाता है।.

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला (लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)

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