देश को रोशन करने के लिए टिहरी ने ली थी जलसमाधि
उत्तराखंड के टिहरी जनपद के पुराने टिहरी शहर को साल 1815 में राजा सुदर्शन शाह ने बसाया था, जिसकी कहानी 2005 में ही खत्म हो गई क्योंकि उस साल पुराने टिहरी शहर को विकास और आधुनिकता की भेंट चढ़ना पड़ा.
देश में उजाला करने के लिए सैकड़ों परिवारों के आशियाने उनकी आंखों से ओझल हो गए. ऐतिहासिक और पौराणिक स्थलों से लेकर राजा का दरबार तक टिहरी के जल समाधि लेने के बाद जलमग्न हो गया. भले ही पुराना टिहरी शहर पानी में डूब गया हो लेकिन आज भी लोगों की स्मृति में तैरता रहता है. देहरादून में टिहरी विस्थापितों को जगह दी गई उनके लिए राजधानी में टिहरी नगर बसाया गया. भले ही इस जगह का नाम टिहरी नगर रख दिया हो लेकिन यहां उस अपने पुराने शहर की आत्मा नहीं बसती है और न ही यहां वो अपने साथ हैं, जो टिहरी में रहा करते थे क्योंकि विस्थापितों को अलग-अलग जगह बसाया गया है. कई लोग पुराने टिहरी से जुड़ी अपनी खट्टी मीठी यादों में आज भी जीते हैं
क्योंकि उनकी स्मृतियों में ही अब टिहरी शहर रहा है. गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी ने भी इस पर एक गीत गाया था, ‘टिहरी डूबण लग्यु चा बेटा डाम का खातिर’…इसे सुन उन लोगों का दिल रो पड़ा.देहरादून के टिहरी नगर निवासी अमित ने कहा कि पुरानी टिहरी की गलियों, खेत-खलिहानों में उनका बचपन और युवावस्था गुजरी थी. जहां यह वक्त बीतता है, उससे जुड़ी खास यादें होती हैं, जिन्हें कभी नहीं भुलाया जा सकता. हर कोई बड़ा होने के बाद अपने स्कूल और कॉलेजों को देख सकता है लेकिन हम कभी नहीं देख सकते हैं.
अपने शहर को डूबने पर परिवार भी बिखर गए. उन्होंने कहा कि हम सभी संयुक्त परिवार में रहा करते थे लेकिन विस्थापन के बाद अब लोग एक दूसरे से दूर रहने को मजबूर हैं. अब वह अकेला महसूस करते हैं क्योंकि परिवार-रिश्तेदार सभी लोग बहुत दूर रहते हैं, जो कभी एक ही शहर और घर में रहा करते थे.अमित बताते हैं कि जब टिहरी शहर डूब रहा था, तो वह अपने दोस्तों के साथ पहाड़ की चोटी पर बैठकर देख रहे थे और निःशब्द थे. वे लोग अपने आप को असहाय महसूस कर रहे थे क्योंकि उनके सामने उनके घर, स्कूल, कॉलेज सभी यादगार पलों को समेटे वह शहर डूब रहा था. उनका कहना है कि भले हमें देहरादून में रहने के लिए जगह मिल गई हो लेकिन उस दर्द को और उस पल को वह जिंदगी भर नहीं भुला सकेंगे.शिव प्रसाद नौटियाल ने से कहा कि उन्होंने नई टिहरी के बारे में काफी रिसर्च की और पढ़ा है. साल 1815 में इस शहर को बसाया गया था. जब इसके लिए पूजन हो रहा था, तभी पंडित ने भविष्यवाणी की थी कि इस शहर की ज्यादा उम्र नहीं होगी और हुआ भी ऐसा ही, साल 2005 में यह डूब गया. इस शहर में राजा द्वारा बनाए गए शीश महल, चांदी का महल, राज दरबार, टिहरी का घंटाघर समेत कई पुराने मंदिर भी डूब गए.
उन्होंने कहा कि टिहरी की सिंगोड़ी काफी ज्यादा मशहूर थी और इसी के साथ ही टिहरी के आजाद नगर में रामलीला देखने के लिए भी भीड़ उमड़ पड़ती थी.उत्तराखंड के टिहरी जनपद के पुराने टिहरी शहर को साल 1815 में राजा सुदर्शन शाह ने बसाया था, जिसकी कहानी 2005 में ही खत्म हो गई क्योंकि उस साल पुराने टिहरी शहर को विकास और आधुनिकता की भेंट चढ़ना पड़ा. देश में उजाला करने के लिए सैकड़ों परिवारों के आशियाने उनकी आंखों से ओझल हो गए. ऐतिहासिक और पौराणिक स्थलों से लेकर राजा का दरबार तक टिहरी के जल समाधि लेने के बाद जलमग्न हो गया. भले ही पुराना टिहरी शहर पानी में डूब गया हो लेकिन आज भी लोगों की स्मृति में तैरता रहता है. देहरादून में टिहरी विस्थापितों को जगह दी गई उनके लिए राजधानी में टिहरी नगर बसाया गया. भले ही इस जगह का नाम टिहरी नगर रख दिया हो लेकिन यहां उस अपने पुराने शहर की आत्मा नहीं बसती है और न ही यहां वो अपने साथ हैं,
जो टिहरी में रहा करते थे क्योंकि विस्थापितों को अलग-अलग जगह बसाया गया है. कई लोग पुराने टिहरी से जुड़ी अपनी खट्टी मीठी यादों में आज भी जीते हैं क्योंकि उनकी स्मृतियों में ही अब टिहरी शहर रहा है. गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी ने भी इस पर एक गीत गाया था, ‘टिहरी डूबण लग्यु चा बेटा डाम का खातिर’…इसे सुन उन लोगों का दिल रो पड़ा.देहरादून के टिहरी नगर निवासी अमित ने कहा कि पुरानी टिहरी की गलियों, खेत-खलिहानों में उनका बचपन और युवावस्था गुजरी थी. जहां यह वक्त बीतता है, उससे जुड़ी खास यादें होती हैं, जिन्हें कभी नहीं भुलाया जा सकता. हर कोई बड़ा होने के बाद अपने स्कूल और कॉलेजों को देख सकता है लेकिन हम कभी नहीं देख सकते हैं. अपने शहर को डूबने पर परिवार भी बिखर गए. उन्होंने कहा कि हम सभी संयुक्त परिवार में रहा करते थे लेकिन विस्थापन के बाद अब लोग एक दूसरे से दूर रहने को मजबूर हैं.
अब वह अकेला महसूस करते हैं क्योंकि परिवार-रिश्तेदार सभी लोग बहुत दूर रहते हैं, जो कभी एक ही शहर और घर में रहा करते थे.अमित बताते हैं कि जब टिहरी शहर डूब रहा था, तो वह अपने दोस्तों के साथ पहाड़ की चोटी पर बैठकर देख रहे थे और निःशब्द थे. वे लोग अपने आप को असहाय महसूस कर रहे थे क्योंकि उनके सामने उनके घर, स्कूल, कॉलेज सभी यादगार पलों को समेटे वह शहर डूब रहा था. उनका कहना है कि भले हमें देहरादून में रहने के लिए जगह मिल गई हो लेकिन उस दर्द को और उस पल को वह जिंदगी भर नहीं भुला सकेंगे. सिर्फ किस्सों में रह गईं पुरानी टिहरी की बातें शिव प्रसाद नौटियाल ने कहा कि उन्होंने नई टिहरी के बारे में काफी रिसर्च की और पढ़ा है.
साल 1815 में इस शहर को बसाया गया था. जब इसके लिए पूजन हो रहा था, तभी पंडित ने भविष्यवाणी की थी कि इस शहर की ज्यादा उम्र नहीं होगी और हुआ भी ऐसा ही, साल 2005 में यह डूब गया. इस शहर में राजा द्वारा बनाए गए शीश महल, चांदी का महल, राज दरबार, टिहरी का घंटाघर समेत कई पुराने मंदिर भी डूब गए. उन्होंने कहा कि टिहरी की सिंगोड़ी काफी ज्यादा मशहूर थी और इसी के साथ ही टिहरी के आजाद नगर में रामलीला देखने के लिए भी भीड़ उमड़ पड़ती थी.लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला (लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।)