राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेनि) गुरमीत सिंह ने किसान मेले में हिस्सा लिया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि आज हम क्लाइमेट चेंज जैसी बड़ी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। उत्तराखंड की इकोलॉजी और एनवायरमेंट भी बहुत ही नाजुक एवं संवेदनशील हैं। इसलिए प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और संवर्धन करते हुए आगे बढ़ना, हमारा लक्ष्य होना चाहिए।
विश्वविद्यालय के चार-दिवसीय किसान मेले का समापन एवं पुरस्कार वितरण समारोह आज गांधी हाल में आयोजित किया गया। समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में महामहिम राज्यपाल उत्तराखंड ले.ज. गुरमीत सिंह के साथ विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रगतिशील कृषक नरेन्द्र सिंह मेहरा, कुलपति, डॉ. मनमोहन सिंह चौहान, निदेशक प्रसार शिक्षा, डा. जितेन्द्र क्वात्रा एवं निदेशक शोध, डा. ए.एस. नैन मंच पर उपस्थित थे। उन्होंने कहा कि हमारे इस विश्वविद्यालय ने देश में हरित क्रान्ति लाने में अग्रणी भूमिका निभाई। यह प्रसन्नता का विषय है कि वर्तमान तक इस विश्वविद्यालय ने लगभग 40 हजार से भी अधिक छात्रों को डिग्रियां प्रदान की है, जो देश और विदेशों में नित्य नई कृषि विकास की गाथा लिख रहे हैं।
मुख्य अतिथि महामहिम राज्यपाल उत्तराखंड ने अपने संबोधन में कहा कि इस मेला का एक अलग ही मतलब है जिसमें हमें जिसमें कुछ नया सीखने को मिलता है। मेले में लगी प्रदर्शनी में एक नया उत्साह देखा। उन्होंने विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों से बीज में क्रांति लाने का आहवान किया और वैज्ञानिकों को सुझाव दिया कि ऐसी तकनीक विकसित करने की आवश्यकता है जिससे किसानों को अधिक से अधिक लाभ मिले। उन्होंने कृषि एवं औद्यानिकी के क्षेत्र में क्रांति पर बल दिया। उन्होंने किसानों और वैज्ञानिकों को एक साथ जुडे रहने के लिए कहा। उन्होंने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय क्यूएस रैंकिग में 311वां स्थान हासिल किया है। उन्होंने कहा कि आय दो गुना नहीं 100 गुना होनी चाहिए और यह तभी सम्भव है जब हम तकनीक को ठीक प्रकार से उपयोग करें। उन्होंने आईआईएम काशीपुर के साथ हुए एमओयू के बारे में जानकारी साझा करते हुए कहा कि उत्पाद की उत्पादकता में सोच, विचार और धारणा बदलकर सबसे अलग पहचान बनाने की बात कही। उन्हांने उत्तराखंड में तीन क्षेत्रों में शहद, इत्र एवं श्रीअन्न पर क्रांति लाने की बात कही। उन्होंने सभी को मिलकर कार्य करने की आवश्यकता पर बल दिया।
राज्यपाल ने कहा कि उत्तराखंड की जलवायु विभिन्न प्रकार के औषधीय एवं सगन्ध पौधों के लिए बहुत ही अनुकूल है, जिसका ध्यान रखते हुए विश्वविद्यालय के औषधीय एवं सगंध पौध शोध केन्द्र द्वारा अनेक तकनीक विकसित किए गए हैं, जो विशेष रूप से लघु एवं सीमान्त कृषकों हेतु लाभकारी है। उन्होंने कहा कि हमारे दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने तत्कालीन परस्थितियों के अनुरूप ‘जय जवान-जय किसान’ का नारा दिया था। समय की मांग को देखते हुए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसमें विज्ञान शब्द जोड़ा था। वर्तमान में हमारे यशस्वी पीएम नरेंद्र मोदी ने अपनी दूरदर्शी सोच-विचार से इस नारे में अनुसंधान शब्द को जोड़ दिया है, और अब यह नारा जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय अनुसंधान हो गया है। अनुसंधान मतलब इनोवेशन और नए आइडिया के साथ देश को आगे बढ़ाने का संकल्प, जो इक्कीसवीं सदी में समय की मांग है। उन्होंने कहा कि आज समय आ गया है जब हमें नए संकल्प के साथ नई दिशा की ओर कदम बढ़ाने की जरूरत है। हमारे कृषि वैज्ञानिकों को कृषि उत्पादकता और खाद्य प्रसंस्करण की समस्याओं के समाधान के लिए संकल्प के साथ काम करना होगा व काश्तकारों के जीवन को आसान बनाने की दिशा में भी और काम करना होगा।
राज्यपाल ने कहा कि आज देश में कृषि के समक्ष बढ़ती जनसंख्या, सिकुड़ती कृषि भूमि, गिरते भू-जल स्तर, मिट्टी की घटती उर्वरता और जलवायु परिवर्तन जैसी अनेक चिन्तनीय समस्याएं उपस्थित हैं, जिनका समाधान खोजना आप जैसे कृषि पेशेवरों का दायित्व है। आपको ऐसे प्रयास करने होंगे जिससे हमारी विशाल जनसंख्या को, पर्यावरण और जैव-विविधता को कम से कम नुकसान पहुंचे और पोषणयुक्त भोजन उपलब्ध कराया जा सके। कृषि पेशेवरों के लिए यह एक चुनौती भी है और अवसर भी। उन्होंने कहा कि खेती की लागत कम करने, उत्पादकता बढ़ाने, कृषि को पर्यावरण के अनुकूल और अधिक लाभदायक बनाने में टेक्नोलॉजी की अहम भूमिका है। उन्होंने कहा कि हमारी स्थानीय आवश्यकताओं और स्थितियों के अनुसार समाधान करने के लिए टेक्नोलॉजी भी स्थानीय होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री का स्वप्न वर्ष 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने का लक्ष्य हम सभी के सामूहिक योगदान के बल पर ही प्राप्त करना संभव हो सकेगा। उन्होंने 116वें अखिल भारतीय किसान मेले में आए हुए सभी आगन्तुकों, कृषकों, मातृशक्ति एवं विभिन्न फर्मों के प्रतिनिधियों को मेले में प्रतिभाग करने हेतु बधाई दी व कृषकों से आह्वान किया कि वे मेले से ज्यादा से ज्यादा उन्नत बीज ले जाएं।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि प्रगतिशील किसान नरेंद्र सिंह मेहरा द्वारा अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि इस मेले के माध्यम से किसान एवं विज्ञान का मेल होता है। उन्होंने विष्वविद्यालय कृषि के क्षेत्र में बदलाव करते हुए तकनीकी के क्षेत्र में अग्रसर हो रहा है।
कुलपति डॉ. मनमोहन सिंह चौहान ने निदेशक प्रसार शिक्षा डा. जितेन्द्र क्वात्रा एवं उनकी टीम को 116वें अखिल भारतीय किसान मेले के सफल आयोजन हेतु बधाई देते हुए कहा कि शिक्षण एवं शोध से जो तकनीकियां विकसित होती है जो समय-समय पर किसानों को उपलब्ध कराया जाना इस विश्वविद्यालय की जिम्मेदारी होती है को वर्ष में दो बार किसान मेले का आयोजन कर प्रदर्शित की जाती है। उन्होंने कहा कि इस मेले में गुणवत्तायुक्त बीज, गुणवत्तायुक्त तकनीकों किसानों तक प्रदान करना ही हमारा उद्देश्य होता है। उन्होंने कहा कि पूरे देश में 33 करोड़ टन अनाज पैदा हो रहा है जिससे आने तीन साल तक अनाज पैदा नहीं होता है तब भी हम 141 करोड़ की जनसंख्या को अनाज उपलब्ध कराने में सक्षम हैं। उन्होंने बताया कि 28 दलहन की फसलें इस समय देश ने स्वीकार की है जिसमें विश्वविद्यालय की 10 प्रजातियां हैं। इसके लिए सभी वैज्ञानिक विद्यार्थियों का आभार व्यक्त किया।
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला(लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)