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Uttarakhand Needs Strict Land Law : हिमाचल की तरह उत्तराखंड में लागू हो सख्त भू-कानून! गर्म हुआ पहाड़ी राज्य का माहौल

उत्तराखंड में जमीनों के सौदागर खबरदार बज चुकी है खतरे की घंटी

उत्तराखंड में इन दिनों भू-कानून का मामला काफी चर्चाओं में है. प्रदेश में कृषि भूमि का घटता दायरा इसकी एक बड़ी वजह है इसलिए प्रदेश के तमाम समाजिक संगठन हिमाचल की तर्ज पर उत्तराखंड में भी भू-कानून की मांग कर रहे हैं. वहीं लोगों की मांगों को देखते हुए सरकार ने भी इस दिशा में कदम उठाया है. मुख्यमंत्री ने खुद घोषणा की है कि उनकी सरकार आगामी बजट सत्र में वृहद भू-कानून लागू करेगी.वहीं, उत्तराखंड की बदलती तस्वीर का चिंताजनक आंकड़ा सामने आया है.

आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि राज्य गठन के बाद उत्तराखंड में दो लाख हेक्टयर से ज्यादा कृषि भूमि कंक्रीट के जंगलों में तब्दील हो चुकी है, जो चिंता का विषय है. उत्तराखंड में तेजी से घटती कृषि भूमि के कई कारण बताए जा रहे हैं. राज्य गठन के बाद से लेकर अभीतक हजारों हेक्टेयर कृषि भूमि या तो विकास की भेंट चढ़ गई, इसके अलावा आपदा और भू-कटाव भी कृषि भूमि का घटने का बड़ा कारण बताया जा रहा है. वहीं गलत तरीके से निजी फायदे के लिए भी उत्तराखंड में जमीनों की काफी खरीद-फरोख्त की गई. जांच में इस तरह की कई धांधलियां सामने आई हैं. उत्तराखंड में तेजी से घटती कृषि भूमि पर सरकार ने भी चिंता जताई है. धामी सरकार में कृषि मंत्री ने कहा कि उत्तराखंड बनने के बाद करीब दो लाख हेक्टेयर कृषि भूमि खत्म हो गई है. अगर किसी योग्य भूमि के घटने का सिलसिला ऐसे ही जारी रहा तो प्रदेश में कृषि भूमि ही नहीं बचेगी. लिहाजा कृषि भूमि की खरीद-फरोख्त पर तत्काल रोक लगनी चाहिए. साथ ही नगर निकाय क्षेत्र से बाहर 250 वर्ग मीटर भूमि खरीदे जाने के प्रावधान की भी समीक्षा होनी चाहिए.

फिलहाल एक ही परिवार के तमाम सदस्यों की ओर से 250 वर्ग मीटर की भूमि खरीदे जाने की मामले पर जांच की जा रही है. लिहाजा जो उत्तराखंड के हित और राज्य की बेहतरीन के लिए ठीक होगा, वो किया जाएगा. वहीं उत्तराखंड के वन मंत्री का कहना है कि कृषि भूमि खरीदे जाने को लेकर ही भू-कानून में प्रावधान किया गया है. प्रदेश में टूरिस्ट से लेकर इंडस्ट्रीज सेक्टर तक की जो संभावनाएं हैं, उसको देखते हुए ही तमाम लोगों ने प्रदेश में कृषि भूमि को खरीदा, लेकिन तमाम ऐसे मामले सामने आए हैं कि किसी व्यक्ति ने जिस लैंड यूज के नाम पर कृषि भूमि खरीदी थी, उसके इतर उस पर कोई दूसरा काम करने लग गए. लिहाजा सरकार ऐसे सभी मामलों की जांच करने के बाद जिन जमीनों का लैंड यूज बदलने का प्रयास किया गया है, उन जमीनों को राज्य सरकार में निहित किया जाएगा. इस पूरे मामले पर एडवोकेट का कहना है कि जमीनों का विवरण तैयार करना या फिर जांच करना राज्य सरकार के लिए आसान नहीं होगा. हालांकि, भू कानून लागू होने के बाद से ही तमाम जमीनों के विवरण ऑनलाइन किए जा चुके हैं, लेकिन बड़ी समस्या यही है कि किस व्यक्ति ने अपने परिवार के नाम से कितनी जमीन खरीदी है, इसका पता लगाना काफी मुश्किल काम है.ऐसा भी हो सकता है कि किसी व्यक्ति ने जमीन खरीदी हो

और फिर उसकी पत्नी ने भी जमीन खरीदी, लेकिन उसके केयर ऑफ में उसके पिता का नाम हो. ऐसे में उसका पता लगाना काफी मुश्किल हो सकता है. ये भी हो सकता है कि किसी ने जमीन परिवार के नाम से खरीदी हो, लेकिन वो जमीन किसी और को बेच दी गई हो.  राज्य सरकार 250 वर्ग मीटर कृषि भूमि के प्रावधान के इतर खरीदी गई जमीनों का विवरण तैयार करने की बात कह रही है. जिन लोगों ने भू कानून बनने के बाद जमीनों को खरीद लिया, अब वो जमीन या वो क्षेत्र नगर निकाय क्षेत्र में आ गए हैं. ऐसे में उन जमीनों पर भू कानून काम नहीं करेगा. क्योंकि, भू कानून में यह प्रावधान है कि नगर निकाय क्षेत्र से बाहर की सभी भूमि पर ही अन्य लोगों की ओर से 250 वर्ग मीटर भूमि खरीदने का प्रावधान है. ऐसे में सरकार के लिए ये भी बड़ी चुनौती होगी

कि जिन लोगों ने खुद और अपने परिवार के नाम पर पहले जमीन खरीदी और अब वो जमीन नगर निकाय क्षेत्र में आ गई है तो फिर उन पर सरकार का क्या स्टैंड रहेगा? वन विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक, प्रदेश के करीब 43,806 हेक्टेयर वन भूमि को 3,903 विकास कार्यों के लिए ट्रांसफर किया गया है. जिसमें से सबसे अधिक 9264.5583 हेक्टेयर वन भूमि को सड़कों के 2,338 मामले में ट्रांसफर किया गया है. इसके अलावा, पेयजल से जुड़े 662 मामले में 165.05 हेक्टेयर, सिंचाई से जुड़े 71 मामले में 70.2529 हेक्टेयर, पारेषण लाइन से जुड़े 118 मामले में 2811.9535 हेक्टेयर, जल विद्युत परियोजना के 80 मामले में 2250.0790 हेक्टेयर, खनन से जुड़े 20 मामले में 8661.0080 हेक्टेयर इसके अलावा स्कूल, कार्यालय, खेल, टावर समेत अन्य 614 मामले से जुड़े कार्यों के लिए 20553.1215 हेक्टेयर वन भूमि ट्रांसफर की जा चुकी है.वहीं, इस पूरे मामले पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कहना है कि पर्यावरण के संरक्षण के लिए जंगलों को बचाना हम सभी का दायित्व है. जंगलों को बचाने के लिए सचेत रहने की जरूरत है. ऐसे में हम सभी सचेत होकर इस दिशा में काम करेंगे.विकास कार्यों समेत अन्य वजहों से कम हो रहे जंगल के सवाल पर कैबिनेट मंत्री ने कहा कि विकास के चलते वन भूमि के ट्रांसफर की घटनाएं बढ़ी है. लेकिन उत्तराखंड के लोग पर्यावरण दिवस और हरेला पर्व पर अधिक वृक्षारोपण करते हैं. ऐसे में उनका मानना है कि पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए विकास होना चाहिए. कैबिनेट मंत्री ने कहा कि विकास के साथ ही पर्यावरण भी जरूरी है. लिहाजा, दोनों में संतुलन बनाकर कार्य करना चाहिए.(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।


डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला(लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं)

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