Freesabmilega.com Uttarakhand Specific “ND Tiwari: The Architect of Uttarakhand’s Development – His Vision, Leadership, and Lasting Legacy”

“ND Tiwari: The Architect of Uttarakhand’s Development – His Vision, Leadership, and Lasting Legacy”

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उत्तराखंड पहाड़ के छोटे से गांव से निकले एनडी तिवारी

विकास पुरुष एनडी तिवारी तिवार भारतीय राजनीति के एक अहम अध्‍याय संघर्ष का स्‍वतंत्रता आंदोलन में
हिस्‍सा लेने वाले और छात्र राजनीति में अपनी धमक जमाते हुए देश की राजनीति के प्रमुख हस्‍ताक्षर बनने तक
उनका सफर तमाम उतार-चढावों से भरा रहा है । पहाड़ के एक छोटे से गांव से निकलकर देश की सियासत को
मजबूत आधार देने वाले एनडी तिवारी का जीवन संघर्ष किसी गाथा से कम नहीं है। भीमताल के धारी ब्‍लॉक में एक
गांव है अक्सोड़ा और बमेठा। इसी गांव से निकले पंडित तिवारी ने दुनिया में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया ।
कहने को तो यह गांव सड़क से जुड़ा है लेकिन बारिश और अधिकांश दिन रास्‍ते में मलवा आने के कारण अक्‍सर बंद
ही रहता है। पदमपुरी से झांझर और उसके बाद बनलेखी तक तक नौ किमी का एकांत सफर और इसके बाद लगभग
दस किमी बमेठा गांव। इस गांव में श्री तिवारी के बिरादरी के लोग हैं पर इनमें से भी अधिकांश हल्द्वानी और
हल्द्वानी के समीप हल्दूचौड़ बस गये हैं। क्षेत्र के लोगा का कहना है कि अपने राजनैतिक जीवन के दौरान श्री नारायण
दत्त तिवारी कभी भी अपने पैतृक गांव नहीं गये। कुछ लोंगों का कहना है कि जीवन काल में ही शायद कभी बमेठा
गांव गये होंगे। वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन चरम पर था तो 17 वर्ष के नारायण दत्त तिवारी भी इसमें कूद
गए।

इसी वर्ष दिसंबर में उन्होंने अंग्रेज सरकार के खिलाफ एक पर्चा लिखा। इस पर तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने
उन्हें गिरफ्तार कर नैनीताल जेल भेज दिया। 15 माह बाद वह रिहा हुए और इलाहाबाद विवि में दाखिल लिया
पैतृक गांव बमेठा और अक्सोड़ा में एनडी की कोई संपत्ति नहीं है। श्री तिवारी के पिता स्व. पूर्णानंद तिवारी ने
राजनैतिक गतिविधि और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रि‍य‍ रहने के कारण उनको अपनी संपत्ति से अलग कर दिया था।
वर्तमान में अक्सोड़ा में श्री तिवारी के चचेरे भाई दुर्गादत्त तिवारी का परिवार (जिसमें उनकी धर्म पत्‍नी भगवती
देवी पुत्र पूरन तिवारी, बेटी की बहु किरन और पौत्र आदि रहते हैं। वहीं श्री तिवारी जी के दूसरे चचेरे भाई  स्व.
जगदीश तिवारी का पुत्र विजय तिवारी भी अक्सोड़ा रहता है। तिवारी जी के परिवार के बारे में कहा जाता है कि
परिवार मूल रूप से अल्मोड़ा से था। पर बाद में नारायण दत्त तिवारी के पूर्वज धारी के बमेठा गांव में आकर बस गये।
बमेठा गांव होने के कारण इनके पूर्वज तब बमेठा लिखने लगे पर बाद में जैसे जैसे पूर्वजों का पलायन होता गया
तिवारी नाम अपने नाम के पीछे से जोड़ते चले गये। इस संदर्भ में श्री नारायण दत्त तिवारी के सगे भाई रमेश तिवारी
जो कि काशी विश्व विद्यालय में प्रो हैं बताते हैं कि शाम वेद को जानने वाले अपने नाम के पीछे तिवारी लगा सकते थे
इसलिये कुछ लोंगों ने अपना नाम बमेठा ही रखा और कुछ लोंगों ने तिवारी लिखना प्रारंभ कर दिया।

उत्तर प्रदेश में तीन बार और उत्तराखंड के एक बार मुख्यमंत्री रहे एनडी तिवारी ने अपने कार्यकाल में कई ऐसे विकास कार्य कराए
जिससे आज भी लोग लाभान्वित हो रहे हैं। पहाड़ के लोगों से उनका कितना गहरा लगाव था इसका अंदाजा इसी
बात से लगाया जा सकता है 1977 में जब एन डी तिवारी उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री थे उस समय क्षेत्र की जनता ने
स्वास्थ्य की कोई व्यवस्था नहीं होने की जानकारी श्री तिवारी को दी। श्री तिवारी ने पदमपुरी में सामुदायिक स्वास्थ्य
केन्द्र की स्थापना कराई। उस समय कुछ समय के लिये अस्पताल में चिकित्सक भी आये और जांच आदि भी हुई पर
जैसे जैसे श्री तिवारी का क्षेत्र में दौरा कम हुआ। अस्पताल की स्थिति भी खराब होते रही। अस्पताल का शिलान्यास
श्री तिवारी ने 15 जनवरी 1977 में कियाथा। बुजुर्ग बताते हैं कि जब धानाचूली पदमपुरी खुटानी मार्ग का प्रारंभ
किया गया तब श्रमदान में श्री तिवारी भी सम्मि‍लित हुए उस समय वे श्रमदान करते हुए अक्सर खुट खुटानी सुट
विनायक वाले शब्दों का गाना गाया करते थे। जिसका अर्थ था कि पांव के सहारे खुटानी तक और वहां से फटाफट
विनायक तक। आज के दिन भी यह मार्ग नैनीताल जनपद के अच्छे मार्गों में गिना जाता है। 1980 के दशक में देश के
उद्योग मंत्री रहते हुए अपने गृह क्षेत्र में पलायन को लेकर काफी चिंतित रहने वाले श्री नारायण दत्त तिवारी ने
भीमताल में 100 एकड़ से भी अधिक भूमि का अधिग्रहण करवाया और वहां युवकों को रोजगार मुहैया कराने के
उद्देश्य से भीमताल में यू पी स्टेट इंडस्ट्रियल कारपोरेशन लि के सहयोग से औद्योगिक घाटी की स्थापना कराई। प्रारंभ
के दस वर्षों में यहां उद्योग भी स्थापित हुए और रोजगार भी मिला पर जैसे जैसे अनुदान समाप्त होता गया
उद्योगपति अपना कारोबार बंद करते रहे। पर बाद में जब 2014 में श्री तिवारी क्षेत्र में आये तो औद्योगिक क्षेत्र की
स्थिति देख व्याकुल दिखे। भीमताल की औद्योगिक स्थिति के बारे में उन्होंने तब भी उद्योग विभाग और केन्द्रीय
उद्योग मंत्री से बात की थी और अपना लगाव भीमताल और विकास के बारे में बताया था। उस समय औद्योगिक बंद
होने से बेरोजगार हुए दर्जनों युवकों ने श्री तिवारी से भेंट कर स्थिति की जानकारी दी थी।

सर्वप्रथम 1952 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से विधानसभा सदस्य। फिर 1957, 1969, 1974, 1977, 1985, 1989 और 1991 में
विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए। दिसंबर 1985 से 1988 तक राज्यसभा के सदस्य रहे। नए-नवेले राज्य उत्तराखंड
के औद्यौगिक विकास के लिए उनके योगदान को हमेशा याद किया जाता है। उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड के पूर्व
मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी की जयंती व पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए श्रद्धांजलि तिवारी ने अलग राज्य
बनने के बाद उत्तराखंड की मजबूती के लिए अनेक कार्य किए थे। उनके मुख्यमंत्रित्व काल में राज्य में विभागों का
ढांचा तैयार कर विकास की बुनियाद रखी। 900 करोड़ की वार्षिक योजना का आकार बढ़ाकर 5000 करोड़ तक
पहुंचाया। राज्य में औद्योगिक क्षेत्रों को विकसित कर राज्य के बेरोजगार नवयुवकों के लिए रोजगार सृजन करने का
काम किया। टिहरी बांध, मनेरी भाली, धौली गंगा जल विद्युत परियोजनाओं का काम पूरा कर राज्य को विद्युत
उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर करने का काम किया। राज्य की शिक्षा व्यवस्था में अमूल-चूल परिवर्तन कर पदों पर
नियुक्ति प्रक्रिया शुरू कर शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने का काम किया। प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के
सपनों को साकार करने के उद्देश्य से पूरे देश में एक दर्जन से अधिक ज्वाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय युवा केंद्रों के संस्थापक
और पूर्व सीएम नारायण दत्त तिवारी का जन्मदिन एवं द्वितीय निर्वाण दिवस पर उनको भावपूर्ण स्मरण किया। इस
मौके पर वक्ताओं ने कहा कि नारायण दत्त तिवारी ने पहले उत्तर प्रदेश और फिर उत्तराखंड में कई एतिहासिक कार्य
किए।

रविवार को नेहरू राष्ट्रीय युवा केंद्र में आयोजित कार्यक्रम में एनडी तिवारी के चित्र पर माल्यार्पण किया गया। इस
मौके पर नारायण दत्त तिवारी यूथ हॉस्टल की अध्यक्ष ने कहा कि नारायण दत्त तिवारी ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड
में विकास की जो बुनियाद रखी वह अनंत काल तक चिरस्थाई रहेगी। उनके सपनों को साकार करने के लिए इस
संस्था में कंप्यूटर शिक्षा, नर्सरी टीचर ट्रेनिंग, ताइक्वांडो, क्रिकेट और  जिमनास्टिक के साथ ही अनेकों सामाजिक
गतिविधियों का संचालन किया जा रहा है।पूर्व विधायक ने कहा कि नारायण दत्त तिवारी ने केंद्रीय उद्योग मंत्री और
यूपी व उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के कार्यकाल में जो विकास कार्य किए वह हमेशा याद किए जाएंगे। एनडी तिवारी के
बाद किसी भी मुख्यमंत्री ने ऐसे ऐतिहासिक काम नहीं किए। विजन, विजय और विकास। लोकतंत्र में सियासी धुरी
पर घूमते-घूमते सत्ता के शीर्ष तक पहुँचने वाले शख्स के लिये ये तीन ‘वि’ बहुत मायने रखते हैं। यह बात दीगर है कि
विजन के बूते विजय पाकर जब विकास के ‘पर्वत’ पर चढ़ने की बारी आती है तो अंगुलियों में गिने नेता ही इसमें
कामयाब हो पाते हैं। कुछ का विजन सियासी जमीन पर विजय के साथ हाँफ जाता है तो कुछ की पद लोलुपता उस
विजन को ही समाप्त कर देती है।

उत्तराखण्ड की 18 साल की राजनीति इसकी गवाह है और एनडी तिवारी इस सफर के अपवाद। उन्हें पर्वत पुत्र कहा
जाता है, विकास पुरुष कहा जाता है। क्यों? क्योंकि वह इस लायक थे। एनडी के बाद किसी चेहरे ने अभी तक
विकास की ऐसी ‘वीर गाथा’ नही लिखी, जिससे देवभूमि की जनता विकास पुरुष द्वितीय की उपाधि से नवाजकर
एनडी का उत्तराधिकारी घोषित कर सके।
पलायन सबसे बड़ा जख्म है उत्तराखण्ड के लिये। उत्तर प्रदेश से अलग होने और स्वतंत्र राज्य के रूप में आगे बढ़ने को
लेकर जब जनता की आवाज 1994 से हिमालय की शृंखलाओं, पर्वतों से टकराते हुए विराट आन्दोलन के ज्वार में
बदली थी तब सपने हजार थे। लोकतंत्र में सुविधाओं के सपने देखना लोक (जनता) का काम है और उन सपनों को
पूरा करना तंत्र (शासन) का। वर्ष 2000 में अलग राज्य घोषित होने के बाद 2002 में जब एनडी तिवारी पहली निर्वाचित सरकार के सीएम बने
तो शुरू हुआ देवभूमि की जमीन पर विकास का असल सफर। पलायन एनडी के निशाने पर रहा और उन्होंने इसे
खत्म करने के लिये सबसे पहले देवभूमि में उद्योगों के झंडे गाड़े। कुमाऊँ में सिडकुल पंतनगर उन्ही के विराट विजन
की देन है। भीमताल का औद्योगिक स्वरूप उन्हीं के बूते अपनी सूरत और सीरत संवार पाया। उद्योगों को प्राथमिकता
इसलिये, ताकि यहाँ के नौजवान हाथों को यहीं काम मिलता रहे। वे नौकरी की तलाश में अपना घर, अपना गाँव,
अपनी माटी से विरत न होने पाएँ। उनकी यह योजना कामयाब भी रही और पहली बार तब रोजगार के द्वार
खुले।पहाड़ के जीवन को, वहाँ की संस्कृति को कैसे बचाया जाना है यह एनडी भली-भाँति जानते थे। पाँच साल तक
सत्ता के शीर्ष पद (मुख्यमंत्री) पर रहते हुए उन्होंने जो किया उसे आज तक जनता भूली नहीं है और यह भी ताज्जुब
की बात है कि एनडी के बाद किसी नेता ने उपलब्धियों का ताज पहना हो, यह जनता को याद नहीं है।एनडी का
कार्यकाल समाप्त होने के बाद सीएम, कुर्सी और भूचाल। इसी में उलझा रहा है उत्तराखण्ड। अब तक सियासत के आठ
‘महाबली’ अपनी-अपनी राजनीतिक धमा-चौकड़ी से सीएम का ओहदा सम्भाल चुके हैं, लेकिन विकास पुरुष का
तमगा सिर्फ एनडी के पास है।

किसी ने यह कोशिश तक नहीं की कि इस तमगे को पाकर वह एनडी के उत्तराधिकारी
के रूप में ख्यातिलब्ध हो सकें। हो भी कैसे, उत्तराखण्ड इसके लिये तैयार होगा ही नहीं। क्योंकि सत्ता के घूमते चक्र
और छोटे से पर्वतीय राज्य में खुद को सूरमा सबित करने की होड़ ने विजय तो दिलाई, विजन और विकास को इस
राज्य की उम्र के साथ आगे बढ़ाने के बजाय स्थिर कर दिया।पलायन अपनी जगह फिर आकर अट्टहास कर रहा है।
गाँव-के-गाँव खाली हो रहे हैं तो युवा रोजगार के लिये भटक कर, थक कर आत्महत्या जैसा कदम उठा रहे हैं।
सिडकुल में उत्तराखण्ड के युवाओं को 70 प्रतिशत रोजगार की सच्चाई जग जाहिर है। भीमताल की औद्योगिक बेल्ट
कुरूप हो रही है।रानीबाग का एचएमटी कारखाना अपनी आखिरी साँसें गिन रहा है और यह उपलब्धियाँ एनडी के
उत्तराखण्ड की सियासत से दूर होने की हैं। सोचिए, विजन कहाँ है और विकास कहाँ है? अगर वाकई में विकास पुरुष
की उपाधि को समय के साथ आगे बढाना है तो एनडी जैसी विचारोत्तेजना और विजन की स्वीकारोक्ति में भावी
सियासतदां को कोई भी हर्ज नहीं होना चाहिए। फिर क्यों न इसी संकल्प के साथ उत्तराखण्ड के विकास पुरुष को
अन्तिम विदाई दी जाए। कठोर-से-कठोर आलोचना के बाद भी उन्होंने कभी पलटकर हमला नहीं किया। कई बार
अवसर आए जबकि विधानसभा में विपक्ष के सदस्यों के हमले का उत्तर देने में उलझने के बजाय वे चुपचाप बैठ जाते
थे। उनकी दृष्टि सदैव विकास पर टिकी रहती थी। चाहे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हों या विपक्ष के नेता या
उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री, वे सदैव विकासोन्मुख नीतियों को आगे बढ़ाने में लगे रहे।राजनीतिक विरोधियों के प्रति
सौहार्द पूर्ण भावना रखने का एक उदाहरण मैं उस समय का दे सकता हूँ। जब वे आपातकालीन स्थिति में मुख्यमंत्री
थे। उन्होंने मुझे बुलाकर चन्द्रशेखर जो जेल में थे, उनके भाई कृपा शंकर जो मेरे आवास पर ठहरे थे को आर्थिक
सहायता की पेशकश की थी। ये बात अलग है कि कृपा शंकर ने उसे अस्वीकार कर दिया था। इसी प्रकार से अन्य
अनेक पीड़ित लोगों के परिवारों की सहायता किया करते थे।

उनके लम्बे राजनीतिक जीवनकाल में एक अवसर ऐसा भी आया था जब नैनीताल लोकसभा से चुनाव लड़ने के लिये नामांकन दाखिल करने के घंटे भर पूर्व राजीव गाँधी ने
उन्हें रोक दिया था। फिर भी वे कांग्रेस में बने रहे थे।नरसिंह राव के प्रधानमंत्रित्व काल में वे एक बार अर्जुन सिंह के
साथ अलग होकर तिवारी कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे, लेकिन सोनिया गाँधी के नेतृत्व सम्भालने पर कांग्रेस में लौट गए।
विरोधाभासी चर्चाओं के बीच सर्वग्राही और सर्वस्पर्शी स्वभाव उनकी सबसे बड़ी विशेषता रही। घोर विरोध करने
वाला व्यक्ति भी कभी उनका कटु आलोचक नहीं बन पाया। वे विकास पुरुष के रूप में स्मरण किये जाते रहेंगे।
नारायण दत्त तिवारी जैसी शख्सियत का दोबारा होना मुमकिन है। राजनीतिक जीवन में शिखर पर रहते हुए भी
उन्हें अहंकार छू नहीं पाया। अपने नजदीकियों की मदद के अलावा विरोधियों की सहायता करने का मौका भी वह
कभी नहीं गँवाते थे। इसलिये विरोधी पार्टियों के नेता कभी उनके आलोचक नहीं रहे। तिवारी जी जब मुख्यमंत्री थे
तो मुरादाबाद के पूर्व विधायक ने सकुचाते हुए उनको आम की दावत दी। संघर्ष के दिनों में सहयोगी रहे हुसैन को डर
था कि मुख्यमंत्री बनने के बाद तिवारी बदल न गए हों। तिवारी जी ने दावतनामा कुबूल करते हुए कहा कि वह पहले
मित्र हैं, मुख्यमंत्री पद के तहत तो वह केवल कामकरतेहैं।प्रदेश के विकास की आधारशिला रखने वाले तिवारी जी को
अपने कार्यों का श्रेय लेने में जरा भी दिलचस्पी नहीं थी। उनके कार्यों को गिना पाना आसान नहीं। अब इसका उलट
है। नेताओं में अपने कामों का ही नहीं दूसरों द्वारा कराये कार्यों का श्रेय भी लेने की होड़ है। तिवारी जी के तेवर
जुझारू थे। गोविन्द बल्लभ पंत के विरोध के बावजूद वह वर्ष 1952 में चुनाव लड़े और कांग्रेस उम्मीदवार को
हराया। आजकल मंत्री व मुख्यमंत्री खुद को विकास पुरुष जताने के लिये लाखों रुपए खर्च करते हैं परन्तु नारायण दत्त
तिवारी सच्चे अर्थों में विकास पुरुष थे। उनके जमाने का विकास आज भी खुद बोलता है।लेखक वर्तमान में दून
विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला (लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)

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