24/10/2024] D.Harish Andola Doon University:
उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्यों को प्रकृति ने कई अनमोल तोहफों से नवाजा है. जो इन हिमालयी राज्यों के लिए आर्थिकी का एक बेहतर जरिया बन सकता है, लेकिन प्रकृति के इस अनमोल उपहार के संरक्षण की भी जरूरत है. प्रकृति का संरक्षण सही मायने में पर्वतीय राज्यों के लिए काफी महत्वपूर्ण है. क्योंकि, प्रकृति संरक्षण के मुख्य आधार जल, जंगल और जमीन ही हैं. ये सभी चीजें उत्तराखंड में मौजूद हैं. यही वजह है कि वैज्ञानिक और पर्यावरणविद् लगातार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि भविष्य में लोगों को शुद्ध हवा और पानी मिल सके, इसके लिए अभी से ही प्रकृति संरक्षण की दिशा में काम करने की जरूरत है. पर्यावरण संरक्षण की बात तो न सिर्फ देश के सभी राज्य कर रहे हैं. बल्कि, विदेश में भी प्रकृति संरक्षण पर जोर दिया जा रहा है. ऐसे में उत्तराखंड दुनिया का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जिसने ग्रॉस एनवायरमेंट प्रोडक्ट इंडेक्स को जारी किया है. उत्तराखंड ग्रॉस एनवायरमेंट प्रोडक्ट इंडेक्स में जल, जंगल, जमीन और वायु है, जो पर्यावरण को संरक्षित करने का काम करते हैं, इन सभी का सूचकांक जारी किया गया है. साथ ही सूचकांक इसको बयां कर रही है कि विकास के नाम पर अगर पेड़ों की कटाई होती है तो फिर इसके एवज में कितने पेड़ लगाए जा रहे हैं. इकोलॉजी और इकोनॉमी में कैसे तालमेल बिठा रहे हैं और किस तरह के विकास मॉडल को अपना रहे हैं. वातावरण में लगातार बढ़ रहे कार्बन डाई ऑक्साइड की वजह से वातावरण का तापमान भी बढ़ रहा है.
यही वजह है कि आज विश्व के लिए ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज एक गंभीर समस्या बनी हुई है. पद्म भूषण व विख्यात पर्यावरणविद् चंडी प्रसाद भट्ट ने वर्तमान में विश्व के सामने आने वाली पर्यावरणीय चुनौतियों, विशेष रूप से हिमालय के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र में छात्रों की समझ बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया।उन्होंने बताया कि कैसे महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र और विविध समुदायों का घर हिमालय का क्षेत्र, वनों की कटाई, जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन और प्रदूषण के कारण गहन पर्यावरणीय गिरावट का अनुभव कर रहा है। उन्होंने हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने के उद्देश्य से चल रही परियोजनाओं पर प्रकाश डालते हुए पर्यावरण संरक्षण में स्वयं किये गये कार्यों के बारे में बताया। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में व्यावहारिक समाधान तैयार करने के लिए नीति निर्माताओं, वैज्ञानिकों और स्थानीय समुदायों के बीच सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि पर्यावरण को संरक्षित करना न केवल एक वैश्विक जिम्मेदारी है बल्कि एक व्यक्तिगत जिम्मेदारी भी है।गहन पर्यावरणीय गिरावट का अनुभव कर रहा है। उन्होंने हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने के उद्देश्य से चल रही परियोजनाओं पर प्रकाश डालते हुए पर्यावरण संरक्षण में स्वयं किये गये कार्यों के बारे में बताया। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में व्यावहारिक समाधान तैयार करने के लिए नीति निर्माताओं, वैज्ञानिकों और स्थानीय समुदायों के बीच सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि पर्यावरण को संरक्षित करना न केवल एक वैश्विक जिम्मेदारी है बल्कि एक व्यक्तिगत जिम्मेदारी भी है। भट्ट ने इसरो के साथ विभिन्न वैज्ञानिक संस्थानों में चारों धाम समेत अलकनंदा नदी के जलस्तर पर किये गये अध्ययन रिर्पोटों पर आपदा प्रबंधन की दृष्टि से आवश्यक कार्यवाही का आश्वासन दिया। सीएम धामी ने बताया कि उत्तराखण्ड पर्यावरणीय दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र हैं। जिस वजह से हमे कई प्रकार की आपदाओं का सामना करना पड़ता है। हिमालयी राज्यों की भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर नीति निर्धारण आवश्यक है। पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन विकट समस्या है। इसके समाधान को पर्वतीय क्षेत्रों में आजीविका वृद्धि के लिए विशेष नीति बनाई जानी चाहिए।मुख्यमंत्री ने नीति आयोग के उपाध्यक्ष के साथ राज्य के महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा भी की। उन्होंने कहा कि राज्य में आपदा, जंगल की आग, पलायन और फ्लोटिंग जनसंख्या बड़ी चुनौती हैं। पर्वतीय, मैदानी, भाबर और तराई के रूप में विषम भौगोलिक परिस्थितियों से राज्य को जूझना पड़ता है।
हिमालय की आबोहवा लगातार खराब हो रही है, हवा में ब्लैक कार्बन , ग्लेश्यिरों का तेजी से पिघलना, बारिश का अनियमित होकर बादल फटने जैसी तमाम घटनाओं का घटना, लगातार हिमालय की खराब सेहत का संकेत दे रहे हैं. प्रदूषण, मानव क्रियाकलाप यहां की पारिस्थिकी पर लगातार प्रभाव डाल रहा है, ऐसे में जल्द प्रभावी कदम नही उठाये जाते हैं तो हिमालय ही मानव अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा होगा. ऐसे में अब इस बात पर जोर देने की जरूरत है कि अपने ढांचागत विकास के लिए नई नीति तैयार की जाए. जिसका आधार होगा कि जब इस तरह की परिस्थितियां आएं तो वो ढांचागत विकास कब हो और कहां हो पर केंद्रित होकर चलेंगे तो भविष्य में सुरक्षित हो पाएंगे. साथ ही कहा कि आने वाले से में पहाड़ की स्थिरता ही मायने नहीं रखेगी. बल्कि, ये भी महत्वपूर्ण होगा कि कब व कितनी बारिश कहां पड़ रही है? उसके चलते क्या क्या संभावित नुकसान हो सकते हैं, उस पर भी ध्यान देने की जरूरत है.सरकार को और बेहतर करने की जरूरत: उत्तराखंड समेत देश के तमाम हिस्सों में भारी बारिश के चलते हो रहे नुकसान के सवाल पर सांसद एवं पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि ये दैवीय आपदा है,
जिसका पहले से अनुमान नहीं लगा सकते कि कहां पर ये आपदा आ सकती है. जिसको देखते हुए उत्तराखंड देश का पहला ऐसा राज्य है, जिसने ‘उत्तराखंड दैवीय आपदा पीड़ित सहायता समिति’ बनायी. साथ ही राज्य की एसडीआरएफ देश में पहले स्थान पर आती है.हालांकि, सरकार की ओर से प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन सरकार को और बेहतर करने की जरूरत है. वर्तमान समय से सबसे बड़ी जरूरत यही है कि आम जनता भी जागरूक हो. सांसद ने कहा कि उत्तराखंड और पूरा हिमालय करीब 2600 किलोमीटर का क्षेत्र मेन सेंट्रल थ्रस्ट में है. जिसके तहत जोशीमठ से पहले हेलंग से लेकर पूरा हिमालय मेन सेंट्रल थ्रस्ट में है. लिहाजा, खासकर इन सेंट्रल थ्रस्ट क्षेत्र के लिए मास्टर प्लान बनाना चाहिए.पूर्व सीएम ने कहा कि वहां की बेयरिंग कैपेसिटी को देखकर छोटे-छोटे टाउन नियोजित तरीके से बनाने चाहिए. ये नियम बनाना चाहिए कि चयनित क्षेत्र में ही आबादी बसेगी, उसके बाहर किसी को बसने का अधिकार नहीं होगा. कुल मिलाकर जिस तरह से आपदाएं बढ़ रही हैं, उसको देखते हुए सख्त कदम उठाने की जरूरूत है. प्रकृति संरक्षण के लिए नेचुरल रिसोर्सेस और बायोडायवर्सिटी पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. नेचुरल रिसोर्सेस में जल, जंगल और जमीन आते हैं, इसका किसी भी राज्य या देश की परिस्थितियों पर बड़ा योगदान रहता है, लेकिन ये नेचुरल रिसोर्सेस उस जगह के क्लाइमेट और डेमोग्राफी पर निर्भर करते हैं. उत्तराखंड सरकार भी प्रकृति संरक्षण को लेकर विशेष जोर दे रही है. ऐसे में जानते हैं किस तरह से प्रकृति संरक्षण किया जा सकता है, क्या होगी इसके दूरगामी परिणाम?लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला (लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)